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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रश्य २] बलभद्रदेशका राजकुमार। १७ कही । मैं तुरन्त उस सूरतको देखनेके लिये इनके साथ हो लिया । उस स्थानपर पहुँचनेपर देखा तो सचमुच इनके कहे अनुसार आपके पिताके ऐसी एक सूरत पास आती देख पड़ी। इन हाथोंमें भी कुछ फ़र्क होगा, पर उनमें...... जयन्त-पर, यह घटना किस स्थान पर हुई ? वीर०-महाराज, किलेके आगेवाले मैदानमें, जहाँ हमलोगोंका पहरा था। नयन्त-क्या तुमने उससे कुछ बातचीत नहीं की ? विशा०-महाराज, मैंने तो बोलनेकी चेष्टां की थी; पर उसने कुछ उत्तर ही नहीं दिया । हाँ, एक बार उसने सिर ऊँचा किया या; और ऐसे भाव बनाये मानों वह कुछ बोला चाहती हो ; पर इतनेमें मुर्गा बाँग देने लगा । उसकी आवाज़ सुनते ही, वह इतनी तेज़ चालसे चली कि देखते देखते गायब हो गई। जयन्त-बड़े आश्चर्यकी बात है ! विशा-महाराज, यह सब सच है । और इसीलिये हमलोग आपकी सेवामें यह घटना निवेदन करने तुरन्त चले आये । जयन्त०-महाशयो, निस्सन्देह तुम्हारी बात सच होगी। परन्तु इस बातके सुननेसे मेरे हृदयकी विचित्र दशा हो रही है.। क्या भान भी वहाँ तुम्हारा पहरा है ? वीर०, भीम-जी हाँ, आज भी है । जयन्त क्या कहा १. वह हथियारबन्द थी ! वीर०, भीम०-हाँ महाराज, हथियारबन्द थी। जयन्त-क्या नख-शिखान्त ! For Private And Personal Use Only
SR No.020403
Book TitleJayant Balbhadra Desh ka Rajkumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanpati Krushna Gurjar
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1912
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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