SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 36
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६ जयन्त [बंक १ गए होते तो बहुत अच्छा होता । मेरे पिताजी पल भरके लिये भी मेरी आँखोंकी ओट नहीं होते। विशा०—किसकी ओट, महाराज ? जयन्त-अजी, हृदयकी ओट-ज्ञानचक्षूकी ओट । विशा. मैंने उन्हें एक बार देखा था। वाह ! कैसे नेक राजा थे। जयन्त-वे तो लाखों में एक ही थे । अब वैसा राजा होना दुर्लभ है। विशा०-महाराज, कल रातको मैंने उन्हें देखा था। जयन्त-देखा था ? किसको ? विशा०-महाराज, आपके पिताजीको । जयन्त-मेरे पिताको ? विशा.-महाराज, हमलोगोंने जो चमत्कार देखा है, वह मैं आपसे निवेदन करता हूं । थोड़ी देरके लिये आश्चर्य करना छोड़ ज़रा ध्यानसे सुनिये । ___ जयन्त-कहो कहो, शीघ्र कह डालो । ... विशा०-परसों और नरसों आधीरातके समय, जब वीरसेन और भीमसेन पहरा दे रहे थे उस समय यह घटना हुई कि आपके पिता जैसी एक सूरत सिरसे पैरतक सिपाहियाना पोशाक पहिनी हुई इनके बिलकुल पाससे धीरे धीरे निकल गई । उसे देखते ही मारे डर और अचम्भेके इनके होश उड़ गये; पैर लटपटाने लगे; शरीर पसीनेसे बिलकुल तर हो गया और मुंहसे एक शब्द भी न निकाल. सके । तीसरे दिन अर्थात् कल रातको इन्होंने एकान्तमें मुझसे यह बात For Private And Personal Use Only
SR No.020403
Book TitleJayant Balbhadra Desh ka Rajkumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanpati Krushna Gurjar
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1912
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy