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दृश्य.२] बलभद्रदेशका राजकुमार ।। लोग जैसे बुद्धिचन और विचारशील पण्डितोंकी भी सम्मति थी। जिसके लिये आपलोगोंको भनेक धन्यवाद हैं । अस्तु, आपलोग जानते हैं कि तरुण युधाजित मेरे प्रिय भाईकी मृत्यु होनेसे यह सोच रहा है कि हमारे राज्यमें फूट हो गई है और अब इसमें कुछ भी शक्ति नहीं रही । इस विचारसे उन्मत्त हो उसने हमारे पास कई बार कहला भेजा है कि 'तुम्हारे भाईने मेरे पितासे जो ज़मीन ली थी वह मुझे लौटा दो। आप जानते हैं कि मेरे परलोकवासी वीर भाईने उसके पिताको द्वन्द्वयुद्ध में परास्तकर उसकी ज़मीन अपने अधीन करली थी। इसलिये द्वन्द्वयुद्धके नियमानुसार उसका अब उसपर किसी तरहका अधिकार नहीं रहा । यह बात तो उसके विषयमें हुई। अब केवल यहां हमारे एकत्रित होनेका कारण बतलाना है । वह यह है कि तरुण युधाजितका चचा बुढ़ापेके कारण बहुत शक्तिहीन हो कर मृत्युशैयापर पड़ा है। उसके भतीजेकी यह कार्रवाई उसके कानोंतक भी नहीं पहुंचने पाती । परन्तु युधाजितकी ये सब बातें उसके चचाके ही धन और फौजकी सहायतासे हो रही हैं । इसीलिये मैंने उसके चचाको इस पत्रमें लिखा है कि वह शीघ्र ही अपने भतीजेकी इस चालको रोक दे । तो, जय और विजय ! तुम दोनों इस पत्रको लेकर शाकद्वीप चले जाओ । राजासे इस विषयमें आवश्यक बातोंको छोड़ और कुछ भी कहनेका तुम्हें अधिकार नहीं है। शीघ्र जाओ, और अपना काम पूरा करके बिना विलम्ब किये वापस चले आओ।
जय । विजय
इ-महाराजकी आशा पालन करनेके लिये हमलोग सदा तैयार हैं।
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