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जयन्त
अंक.१ शिखर सुनहरे हो रहे हैं तो चलो, अब पहरा समाप्त करें । और अगर मेरी सलाह पूछो तो रातका सारा हाल चलकर अपने तरुण जयन्तको सुनावें । वह पिशाच उनसे बोलेगा । प्रेमके लिये समझो या कर्तव्यके ही लिये, यह बात हमें उनसे कह देनी चाहिये। .. वीर०-हां अवश्य कहनी चाहिये । चलो, मैं जानता हूं इस समय उनसे कहां भेंट होगी।
दूसरा दृश्य।
दरबार ।
राजा, रानी, जयन्त, धूर्जटि, चन्द्रसेन, जय, विजय, दरबारी लोग और सेवकोंका प्रवेश ।
राजा--प्यारे सरदारो ! मेरे प्रिय भाईके मरनकी याद हृदयमें अभीतक बनी रहनेसे मैं ही नहीं किन्तु मेरी सारी प्रजा दुःखसागरमें डूब रही है । परन्तु जो उत्पन्न होता है वह अवश्य ही मरता है; यह सोचकर दुःख भूल जानेका यत्न करना चाहिये । इसीलिये मैंने अपनी भौजाई-इस प्रबल राष्ट्रकी अर्धस्वामिनी तथा आपलोगोंकी वर्तमान महारानीसे विवाह किया है । इस विवाहके कारण हृदयमें आनन्द
और दुःखकी मात्रा बराबर हो जानेसे मनकी कुछ ऐसी विचित्र दशा हो रही है जो कही नहीं जा सकती । भ्रातृ-वियोगके कारण एक नेत्रसे दुःखाश्रु और पत्नीपाणिग्रहणके कारण दूसरेसे आनन्दाभु ! एक
ओर श्राद्धक्रिया तो दूसरी ओर विवाहोत्सव ! यह सुख दुःखका संमि• श्रण मैंने केवल अपनी ही बुद्धिसे नहीं किया है, किन्तु इसमें अपा
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