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* श्रीः *
जयन्त, बलभद्रदेशका राजकुमार।
पहिला अंक।
पहिला दृश्य । स्थान--कुंजपुर, किलेके आगेका मैदान ।
गदाधरसिंह पहरेपर है । भीमसेन प्रवेश करता है। भीमसेन-कौन है ? गदाधर-ठहरो, पहले तुम ही बताओ-तुम कौन हो ? भी०-महाराज दीर्घायु हों ! गदा.-कौन, भीमसेन ? भी०-हाँ वही। गदा.-तुमतो ठीक अपने समयपर आगए ! भी०-बारह बज गए । गदाधरसिंह, अब जाओ, आराम करो ।
गदा०-इस कृपाके लिये तुम्हें धन्यवाद हैं । ओफ़ ! कैसी भयानक भर्दी है ! सर्दीके मारे तो बदन ठिठुरा जाता है !
भी०-पहरेपर रहते कुछ गड़बड़ तो नहीं हुई ? गदा०-नहीं, पेंड़की पत्ती भी नहीं हिली ।।
भी०-अच्छा रामराम । मेरे बाद विशालाक्षे और वीरसेनका पहरा है। अगर कहीं मिले तो उन्हें जल्द भेज देना ।
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