Book Title: Jaganmohanlal Pandita Sadhuwad Granth
Author(s): Sudarshanlal Jain
Publisher: Jaganmohanlal Shastri Sadhuwad Samiti Jabalpur
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विन्ध्य क्षेत्र के जैन विद्वान्- १. टीकागढ़ और छतरपुर ४५
प्रभावक वक्ता रहे हैं । आप अपनी योग्यता के बल पर मेरठ विश्वविद्यालय में बोर्ड आफ स्टडीज एवं संस्कृत परिषद के सदस्य रहे हैं। आपकी योग्यता, समाज-सेवा एवं साहित्य-सृजन से प्रभावित होकर वीर निर्वाण भारती ने समाज रत्न की उपाधि एवं २५००/- रु० का पुरस्कार प्रदान कर सम्मानित किया। समाज का यह होनहार, योग्य विद्वान असमय में ही इस धरा से सदैव के लिये उठ गया ।
श्री पं० खुन्नी लाल जी ( १९०० - १९८८ ) निरन्तर शास्त्र स्वाध्याय में रत श्री पं० खुन्नी लाल जी ( अब ज्ञानानन्द जी ) का जन्म १९०० में हुआ था । धर्म, न्याय, व्याकरण का अध्ययन करने के पश्चात् आपने व्यवसाय करना प्रारम्भ किया। आप समाज सेवा के क्षेत्र में हमेशा आगे रहे हैं । श्री दिगम्बर जैन विद्यालय, पपीरा जी के सम्बर्धन में आपकी सेवायें मंत्री - अध्यक्ष के रूप में प्राप्त होती रही हैं । आपने अकलंक सरस्वती सदन, "ज्ञानामृत" पुस्तकालयों की स्थापना की । आपके प्रवचन प्रभावशाली होते हैं । आप ज्ञान और चरित्र के धनी हैं । आप अत्यन्त सरल स्वभाव के हैं और अनोखी सूझबूझ के हैं । इसीसे वे समाज की जटिल से जटिल गुत्थियों को आसानी से हल कर देते हैं । सामाजिक वैमनस्य को तो आप इस तरह खत्म करा देते हैं जैसे कभी रही ही न हो। दीन-अनाथों के प्रति आप दयालु प्रकृति के हैं। ज्ञान, चारित्र और मृदु व्यवहार से आप समाज में बहुमान्य हैं ।
श्री पं० गोविन्द दास जी (१९१९ -
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पुरातत्त्व की खान अहार, जिला टीकमगढ़ में पं० गोविन्द दास जी का जन्म सन् १९१९ में हुआ । कोठिया वंश में जन्म लेने के कारण आप अपने नाम के साथ कोठिया भी लिखते हैं । आपने एम. ए., साहित्याचार्यं, न्यायतीर्थ की परीक्षायें उत्तीर्ण करने के पश्चात् महार, इन्दौर, मुरैना आदि के जैन विद्यालयों में प्रधानाचार्य के रूप में कार्य किया है ।
आपमें साहित्यिक प्रतिभा है । आपकी रचनाओं में ज्ञानमाल पच्चीसी, अहार वैभव, अमरसन्देश, अहार दर्शन, प्राचीन शिलालेख ( अहार ) प्रकाशित हैं तथा शान्तिनाथ संग्रहालय की परिचयात्मक सूची, चन्द्रप्रभु चरित, चौथा सर्ग की हिन्दी-संस्कृत टीका, धर्मशर्माभ्युदय छठवाँ सर्ग की हिन्दी-संस्कृत टीका, अहार का इतिहास, रांगा की चांदी नाटक अप्रकाशित महत्वपूर्ण रचनायें हैं । आप संस्कृत, हिन्दी और व्याकरण के विद्वान हैं तथा अध्यापन - अध्ययन - लेखन ही आपके प्रमुख कार्य हैं । आप अत्यन्त सरल, विनम्र और मृदु स्वभावी हैं । आपके द्वारा रचित साहित्य महत्वपूर्ण है । अप्रकाशित साहित्य को शीघ्र प्रकाशित करने के लिये प्रकाशकों की प्रतीक्षा है । आप कुशल वैद्य भी हैं ।
पं० किशोरी लाल जी (१९०५ - १९५३)
प्रतिष्ठा विशेषज्ञ पं० किशोरी लाल जी शास्त्री मूलतः मालथौन जिला सागर के निवासी हैं। आपका करने के उपरांत आपने सादूमल एवं पपौरा विद्यालय में व्यवसाय करने लगे । आपने प्रतिष्ठा ग्रंथों का अध्ययन कर सह-सम्पादक रहे हैं । आपने विधवा-विवाह मीमांसा, शूद्र आपका जीवन सादा, सरल था
जन्म १९०५ में हुआ था। शास्त्री तक शिक्षा ग्रहण शिक्षण कार्य किया । सन् १९४३ से आप अपना स्वतंत्र प्रतिष्ठा कार्य किया। नौ वर्ष तक आप जैनगजट के जलत्याग मीमांसा आदि महत्वपूर्ण लेखों द्वारा समाज को स्वस्थ विचार दिये हैं।
और धार्मिक श्रद्धा अटूट थी ।
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श्री पं० गुलाब चन्द्र जी पुष्प (१९२४
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ककरवाहा जिला टीकमगढ़ के जन्मे 'पुष्प' उपनाम से प्रसिद्ध मृदुभाषी, सरल, श्री गुलाब चन्द्र जी पुष्प ज्योतिष, वैद्यक और प्रतिष्ठा के निष्णात विद्वान् हैं । संगीत में विशेष रुचि होने से आपके द्वारा कराये जाने
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