Book Title: Jaganmohanlal Pandita Sadhuwad Granth
Author(s): Sudarshanlal Jain
Publisher: Jaganmohanlal Shastri Sadhuwad Samiti Jabalpur
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७६ पं० जगन्मोहनलाल शास्त्री साधुवाद ग्रन्थ
[खण्ड
सामान्यतः पंडित जी का अपने अधीनस्थ कार्यकर्ताओं एवं विद्वानों के प्रति मधुर एवं ससम्मान व्यवहार रहता था । इसीलिये कार्यकर्तागण और सहयोगी पीठ पीछे भी उनकी प्रशंसा किया करते थे । उनका यह प्रयास रहा है कि कुशाग्र बुद्धि छात्र अर्थाभाव के कारण अध्ययन से वंचित न रह पावे ।
(ब) क्षमादान से सीख
एक बार संघ के एक प्रचारक ने दूरगामी प्रचारयात्रा के लिये मुझे प्रथम श्रेणी के यात्राव्यय का बिल दिया और उसने कल्पित टिकिट नम्बर लिख दिया। जांच करने पर मुझे पता चला कि किसी विशिष्ट दिन प्रथम श्रेणी का कोई टिकिट ही नहीं बिका। संबंधित प्रचारक ने अपनी भूल स्वीकार की। मैंने पंडित जी से इसकी रिर्पोट की, उन्होंने प्रधानमंत्री के रूप में विद्वान् को समझाया और उसकी भूल को क्षमाकर दिया। इससे उसका भविष्य ही सुधर गया ।
(स) तेल चोर की सहायता
जब पंडित जी काशी में अध्ययन करते थे, उस समय विद्यालय के छात्रावास में बिजली नहीं थी । छात्रों को पढ़ने के लिए लालटेन या डिब्बी का तेल दिया जाता था । उन दिनों एक छात्र रात में काफी देर तक पढ़ते थे और उनका तेल उन्हें पूरा नहीं पड़ता था । अतः वे रात में दूसरों की लालटेनों का तेल चोरी से निकाल कर अपनी डिब्बी में डाल कर पढ़ा करते थे । एक रात ऐसा करते हुए पंडित जी ने उन्हें देख लिया। पूछने पर उन्होंने सच बात बता दी। पंडित जी ने उस छात्र से कहा, "आज तेल चुराते हो, यही आदत बन गई, तो आगे अन्य चीजें भी चुराओगे । ऐसा नहीं करना चाहिये ।"
पंडित जी ने यह बात अपने पिता जी से कहीं। इस छात्र को आवश्यकतानुसार तेल के लिए पैसे दे दिया करो ।" किया । यह छात्र बाद में अच्छे विद्वान् बने और उन्होंने एक ग्रन्थ की टीका भी की ।
उन्होंने उदारतापूर्वक कहा, "तुम अपनी ओर से पंडित जी ने बाबा जी की आज्ञा का पालन
इसी प्रकार, एक बार एक सहयोगी विद्वान् के पुत्र को भी उन्होंने शिक्षा संस्था में अशंकालिक काम देकर अधिक वेतन दिया और सहायता की। इस सुविधा से उस छात्र का अध्ययन निरंतर चलता रहा और उसने जीवन में अच्छी प्रगति की । एक अन्य छात्र कटनी से पढ़कर वाराणसी गया । एक बार वह पंडित जी के पास आया और बोला, “पंडित जी, मेरे पास परीक्षाफार्म भरने को पैसा नहीं है । यदि फार्म नहीं भर सका, तो बर्ष बरबाद हो जायगी ।" पंडित जी ने अपने ज्येष्ठ पुत्र को उसकी सहायता करने का निर्देश दिया। बाद में वह छात्र उच्च अध्ययन कर अच्छे पद पर पहुँचे ।
सूझबूझ एवं चतुराई : (अ) शहडोल के नायक परिवार में सुलह
पंडित जी ने अनेक अवसरों पर व्यक्तिगत समस्याओं एवं सामाजिक संस्थाओं की जटिल परिस्थितियों पर अपनी चतुरता एव सूझबूझ का उपयोग कर जन-सामान्य को प्रभावित किया है । शहडोल के प्रतिष्ठित एवं धार्मिक नायक परिवार में बटवारे को लेकर वैमनस्य हो गया। मामला न्यायालय में भी गया। एक बार पंडित जी एक वेदी प्रतिष्ठा के समय शहडोल आये । दोनों पक्षों ने अपना प्रकरण पंडित जी को समझौता कराने हेतु सौंप दिया। उन्होंने भी अपनी यात्रा स्थगित कर अपनी सूझ-बूझ एवं चतुराई से दोनों पक्षों में राजीनामा करा दिया । इसे मैंने ही लिपिबद्ध किया था और इसकी प्रति मेरे पास अब भी मौजूद है । इसमें पंडित जी के व्यक्तित्व ने भी महायता की । दोनों पक्षों ने मामले उठा लिये और अब समृद्ध व्यापार कर रहे हैं ।
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