Book Title: Jaganmohanlal Pandita Sadhuwad Granth
Author(s): Sudarshanlal Jain
Publisher: Jaganmohanlal Shastri Sadhuwad Samiti Jabalpur
View full book text
________________
३६६ पं० जगन्मोहनलाल शास्त्री साधुवाद ग्रन्थ
[ खण्ड
(i) जिनबिम्ब के प्रतिष्ठाकार सा० काकल परवार (पौरपाट) जातीय थे।
(ii) इन्हें ठाकुर कहा गया है। इससे यह निश्चित होता है कि इस अन्वय का विकास प्रधानरूप से क्षत्रिय वंशों से हुआ है।
(ई) यह उल्लेख किया जा चुका है कि शाह वखतराम ने अपने 'बुद्धिविलास' में जातियों की सूची में 'परवार' को 'पुरवार' बताया है । इससे पता चलता है कि लेखक की दृष्टि में 'पुरवार' और 'परवार' अन्वय में कोई भेद नहीं था।
(उ) 'परवार बंधु' के मार्च १९४० के अक में स्व० बाबू ठाकुरदास जी टीकमगढ़ ने कतिपय मूतिलेख प्रस्तुत किये हैं, उनमें एक लेख ऐसा भी मुद्रित हुआ है जिसमें इस अन्वय को परपट कहा गया है ।
परपटान्वये शुभे साधुनाम्ना महेश्वरः । यह लेख लगभग ११-१२ वीं सदी का है। . इस प्रकार, प्रतिमा लेखों में इस अन्वय के लिए अनेक नामों का उल्लेख हुआ है । पर उन सबका आशय एकमात्र 'पौरपाट' अन्वय से ही रहा है। यह स्पष्ट है कि इस अन्वय के लिए बारहवीं सदी से 'परवार' नाय का प्रयोग होने लगा था।
सन्दर्भ ग्रन्थ १. लोढ़ा, दौलत सिंह, प्राग्वाट इतिहास, १-२ । २. वैद्य, चितामणि विनायक; मध्ययुगीन भारत । ३. जोहरापुरकर, विद्याधर; भट्टारक सम्प्रदाय । ४. नाथूराम प्रेमी; परवार बंधु, परवार सभा, जबलपुर, अप्रैल मई, १९४० । ५. ठाकुर दास जैन; पूर्वोक्त, मार्च, १९४० । ६. - जातिभास्कर, वेंकटेश्वर प्रिंटिंग प्रेस, बम्बई । ७. मुंशी, के० एम; गुजरातनोनाय । ८. ओझा, गौरीशंकर होराचन्द्र; राजपूताना का इतिहास-। ९. शास्त्री, नेमचन्द्र; महावीर और उनकी आचार्य परम्परा, दि० जैन विद्वत् परिषद्, सागर, १९७४ । १०. समंतभद्र, स्वामी; रत्नकरंड श्रावकाचार । ११. वट्टकेर, आचार्य; मूलाचार, भारतीय ज्ञानपीठ, काशो, १९८४ । १२. विद्यालंकार सत्यकेतु; अग्रवाल जाति का इतिहास । १३. आचार्य, सोमदेव; उपासकाध्ययन, भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली । १४. मुनि जिनविजय; कुमारपाल प्रतिबोध । १५. नेमिचंद्र, सूरि; महावीर चरित्र । १६. - चरित्रसार, दि० जैन समाज, सीकर, १९४४ ।
आ० पंडित जी का यह लेख उनके एक पूर्ण लेख का एक अंश है। सम्पादक मण्डल को यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि पूर्ण लेख शीघ्र पुस्तकाकार रूप में दि० जैन परवार सभा, जबलपुर की ओर से प्रकाशित होने वाला है । हमारे ग्रन्थ के लिए व्यक्तिगत रूप से इस लेख को देने के लिए समिति पण्डित जी का आभारी है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org