Book Title: Jaganmohanlal Pandita Sadhuwad Granth
Author(s): Sudarshanlal Jain
Publisher: Jaganmohanlal Shastri Sadhuwad Samiti Jabalpur

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Page 585
________________ ४३६ पं. जगन्मोहनलाल शास्त्री साधुवाद ग्रन्थ [ खण्ड द्वारा प्रयुक्त प्रतीकों का प्रयोग उल्लेखनीय है । सार्वभौम प्रतीकों के अतिरिक्त पूर्ण प्रतीक-काव्य रचे गए है। इस दृष्टि से सम्मेद शिखर उल्लेखनीय काव्य है । साथ ही साथ एक शब्द में अनेक प्रतीक-प्रयोग द्रष्टव्य हैं । ___ इस प्रकार यह सहज में कहा जा सकता है कि जैन कवियों को हिन्दी रचनाएँ भी प्रतीकों के प्रयोग से सम्पन्न है और कहीं-कहीं तो नवीन प्रयोगों से हिन्दी का भंडार भरने में सहायक को भूमिका निर्वाह करते हैं। सदभित ग्रन्थों को तालिका १. अमरकोश टोका, भट्टोजी दीक्षित । २. साहित्य कोश, सम्पादित डा० धीरेन्द्र वर्मा, प्रथम भाग । ३. पाइटिक इमेज, सी० डी० लेविस । ४. पाइटिक पेअन, रोपिज्ञ स्क्लंटन । ५. जैन कवियों के हिन्दी काव्य का काव्यशास्त्रीय मूल्यांकन, डा. महेन्द्र सागर प्रचंडिया । ६. आधुनिक हिन्दी कविता में चित्र-विधान, डा० रामयतन सिंह भ्रमर । ७. आधुनिक हिन्दी काव्य में अप्रस्तुत विधान, डा० नरेन्द्र मोहन । ८. काव्यदर्पण, प० रामदहन मिश्र । ९. काव्यशास्त्र, डा० भगीरथ मिश्र । १०. गुण ठाणा गीत, मनोहर दास । ११. गौडी पार्श्वनाथ स्तवन, कुशल लाभ । १२. चरखा शतक, भूधर दास । १३. चूनड़ी, ब्र० जिनदास । १४. जम्बू स्वामो बिबाहुआ, हीरानन्द सूरि । १५. जैन पदावलि, जगतराम ।। १६. नेमिनाथ बारहमासा, लावण्य समय । १७. प्रद्युम्न चरित्र, सधारु । १८. बनारसी विलास, बनारसीदास । १९. बारह भावना, मगत राय । २०. बाइस परिणय, भैय्या भगवतीदास । २१. मनकरहा रास, पं० भगवतीदास । २२. विवाहलो काव्य, डा० पुरुषोत्तम मेनारिया । २३. समयसार नाटक, बनारसीदास । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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