Book Title: Jaganmohanlal Pandita Sadhuwad Granth
Author(s): Sudarshanlal Jain
Publisher: Jaganmohanlal Shastri Sadhuwad Samiti Jabalpur
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शहडोल जिले की प्राचीन जैन कला और स्थापत्य ३८५
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पुरातत्त्वीय सर्वेक्षण के आलोक में जैन कला
सुप्रसिद्ध पुरातत्त्वविद श्री बैगलर ने सन् १८७३ में शहडोल जिले का पुरातत्त्वीय सर्वेक्षण किया था। उनके प्रतिवेदन के अनुसार सोहागपुर के महल एवं इसके निकटवर्ती क्षेत्रों में जैन मन्दिरों के अवशेष, तीर्थकर मतियाँ एवं शासन देवी-देवताओं की अनेकों प्रतिमा बिखरी थीं। उनके अनुसार सोहागपुर प्रक्षेत्र १०-११ वीं शताब्दि में जैन धर्मावलम्बियों का विशाल केन्द्र रहा होगा । जैन कला से सम्बन्धित उनके प्रतिवेदन अवलोकनीय है। (१) सोहागपुर का महल (गढ़ी)
सोहागपुर के महल में जैन तीर्थंकर एवं जैन देवी-देवताओं की अनेकों मूर्तियाँ विद्यमान थीं। ये मूर्तियाँ दीवालों में लगी थीं। महल के प्रवेश द्वार के बाहर भी अनेक जैन मूर्तियां थीं। महल के प्रांगण की दीवाल पर १२ हाथों वाली देवी की मूर्ति थी जिसके ऊपर एक जैन नग्न मूर्ति बैठी थी। प्रतिमा के नीचे चिड़िया का चिह्न था । मस्तक पर एक विशाल नाग अपना फन फैलाये था। मूर्ति का लेख अपठनीय था। यह मूर्ति भागवान् पाश्वनाथ एवं उनकी शासनदेवी पद्मावती की है। इस मूर्ति के निकट एक बहुत भव्य जन सिंहासन (पेडेस्टल) एवं अन्य जैन मूर्तियां थीं। वर्तमान में, इस महल में चार तीर्थंकरों के अधिष्ठान शेष है, जिनका पंजीयन हा (२) ११वीं सदी के विराटेश्वर मन्दिर को निर्माण शैली
लाल, पीले एवं गहरे कत्थई रंग के बलुआ पत्थरों से निर्मित यह मन्दिर सोहागपुर गढ़ी से लगभग एक किलोमोटर दूर स्थित है । बैंगलर ने इस मन्दिर को खजुराहों के समकालीन ११वीं सदो की निरूपित किया है। इसकी विशाल शिखर पत्थर क्षरण के कारण पीछे की ओर झुकती जा रही है । इसकी सुरक्षा हेतु तत्काल समुचित उपाय अपेक्षित है।
स्थापत्य कला एवं शैली की दृष्टि से बैगलर ने इस मन्दिर को खजुराहो के जवारी मन्दिर के अनुरूप निरूपित किया। इसका विशाल शिखर खजुराहो के जैन मन्दिरों की शैली एवं स्थापत्य कला के अनुरूप है। बैंगलर इस मन्दिर की भव्यता, कलात्मकता और शैली से बहुत प्रभावित हुआ और उसने इस मन्दिर के विस्तृत अध्ययन का सुझाव दिया । इस मन्दिर के महामंडप में दो जैन तीर्थंकर की प्रतिमाएं भी संग्रहीत हैं । (३) १०वीं सदी के दो जैन मन्दिर
विद्यमान विराट मन्दिर के पूर्वीखण्ड के विस्तृत मैदान में बंगलर ने मन्दिरों के भग्नावशेषों एवं खण्डहरों को देखा। नवीन सोहागपुर नगर के निर्माण में इन अवशेषों का उपयाग खदान के रूप में किया गया। बैगलर ने आठ मन्दिरों के समूह को. देखा जिनमें दो मन्दिर निश्चित हो जैन थे। जैन मन्दिर के निकट एक मूर्ति रखी थी जिस पर 'श्रीचन्द्र' अंकित था। इस आकृति पर हिरण का चिह्न था। एक अन्य मूर्ति के पादमूल पर कुछ शब्द अंकित थे जो धारदार शस्त्रों के खरोंच दिये गये थे। बैंगलर के अनुसार यह जैन मन्दिर दसवीं सदी के आसपास का होगा। इन आठ मन्दिरों में दो वैष्णव, दो शैव के थे। दो मन्दिरों को पहिचाना नहीं जा सका था। उत्तर खण्ड में एक विशाल मन्दिर का स्मारक था जिसके चारों ओर आरंग एवं भेड़ाघाट के चौसठ योगिनी मन्दिरों जैसी छोटो-छोटी कोठरियां थीं, मन्दिर थे जिसके दोनों ओर दो बावली थी। लगता है कि यह तपस्त्रियों का उपासना-गृह या यात्रियों का आश्रम स्थल रहा होगा। (४) प्राचीन जैन भग्नावशेषः जैन मूति एवं स्तूप स्मारक
उत्तर की ओर भग्न मन्दिरों के दो समूह थे। इन समूहों के मध्य एक एकांकी टीला था जिससे समोप जैन मूर्तियां थीं। एक मूर्ति के पीछे कुछ अंकित था। इसके दक्षिण-पूर्व में विशाल मन्दिरों का समूह था जिसमें अनेक
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