Book Title: Jaganmohanlal Pandita Sadhuwad Granth
Author(s): Sudarshanlal Jain
Publisher: Jaganmohanlal Shastri Sadhuwad Samiti Jabalpur
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सा विद्या या विमुक्तये ५
संवेग और संवेद -ये दो महत्वपूर्ण तत्त्व हैं, क्योंकि वर्तमान में जो सामयिक समस्याएं हैं, वे सारी इन दो तत्त्वों के साथ जुड़ी हुई है । जो शिक्षा प्रणाली विद्यार्थी को समाज की वर्तमान समस्याओं के सन्दर्भ में कुछ कार्य करने की प्रेरणा नहीं देती, वह शिक्षा प्रणाली बहुत काम की नहीं होती। "फेरो" ने ठीक ही लिखा-"साक्षर व्यक्ति केवल सरकार का इंधन बनता है।" आज की शिक्षा ईधन मात्र तैयार कर रही है, ज्योति तैयार नहीं करती। ज्योति और इंधन एक बात नहीं है । इंधन तैयार करना बहुत बड़ी बात नहीं है । बड़ी बात है-ज्योति प्रज्वलित करना।
आज समूचे विश्व में बहुत क्रांतदृष्टि से सोचा जा रहा है कि शिक्षा में क्या परिवर्तन होना चाहिए । जिस शिक्षा से समाज में, व्यवस्थाओं में परिवर्तन नहीं आता, संकट कम नहीं होता, उस शिक्षा को भारतीय दर्शन में अशिक्षा और ज्ञान को अज्ञान माना है। भारत की प्रत्येक धर्म-परम्परा का यह स्वर समानरूप से मिलेगा कि जिससे संयम की शक्ति और त्याग की शक्ति नहीं बढ़ती, वह ज्ञान अज्ञान है। जिसमें त्याग और संयम नहीं है, वह पंडित नहीं, अपंडित है।
जन ग्रन्थों में 'बाल' और 'पंडित'-- ये दो शब्द प्रचलित हैं । बाल तीन प्रकार के होते हैं। एक बाल होता है अवस्था से, दूसरा बाल होता है अज्ञान से और तीसरा बाल होता है असंयम से। जिसमें त्याग की क्षमता नहीं है, वह सत्तर वर्ष का हो जाने पर भी 'बाल' कहा जायेगा । जिसमें त्याग की क्षमता है, अस्वीकार की क्षमता है, बलिदान की क्षमता है, वह चाहे बीस वर्ष का ही हो, फिर भी पंडित कहा जाएगा, बाल नहीं कहा जाएगा। गोता में पंडित उसे कहा है जिसके सारे समारम्भ वजित हो गए है । जैन आगम सूत्रकृतांग में एक चर्चा के प्रसंग में प्रश्न रखा गया है कि 'बाल' और 'पंडित' किसे कहा जाए ? सूत्रकार ने उत्तर दिया – 'अविरई पडुच्च बालोत्ति आह, विरइं पडुच्च पंडिएति आह'-जिसमें अविरति है, अपनी इच्छाओं पर नियन्त्रण करने को क्षमता है, वह पंडित है।
इच्छा प्राणीमात्र का असाधारण गुण है, विशिष्ट गुण है । जिसमें इच्छा नहीं होती, वह प्राणी नहीं होता। ., यह प्राणी और अप्राणी की भेद-रेखा है । मनुष्य में इच्छा पैदा होती है । इच्छा पैदा होना एक बात है और किस इच्छा को स्वीकार करना, किस इच्छा को अस्वीकार करना, यह कांट-छाँट मनुष्य ही कर सकता है। अन्य प्राणी ऐसा नहीं कर सकते । मनुष्य की विवेक चेतना जागृत होती है, इसलिए वह इच्छा को कांट-छांट कर सकता है ।
हर इच्छा को स्वीकार नहीं करता । यदि वह प्रत्येक इच्छा को स्वीकार करता चले, तो सारो व्यवस्था गड़बड़ा जाती है । एक सुन्दर मकान देखा, किसकी इच्छा नहीं होगी कि मैं इस मकान में रहं ? इच्छा हो सकती है। रास्ते में खड़ी सुन्दर कार को देखा, कौन नहीं चाहेगा कि मैं इसमें सवारी करूं। इच्छा हो सकती है। प्रत्येक रमणीय सुन्दर और मनोरम वस्तु के लिए व्यक्ति की इच्छा हो सकती है। पर वह यह सोचकर इच्छा को अमान्य कर देता है कि यह मेरो सीमा की बात नहीं । यह है विवेक-चेतना का काम ।
___ शिक्षा का काम है कि वह मनुष्य मनुष्य में विवेक चेतना को जगाए। इससे संवेग नियन्त्रण और संवेदनाओं तथा आवेगों पर नियन्त्रण करने की क्षमता पैदा होती है।
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