Book Title: Jaganmohanlal Pandita Sadhuwad Granth
Author(s): Sudarshanlal Jain
Publisher: Jaganmohanlal Shastri Sadhuwad Samiti Jabalpur
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१७६ पं० जगन्मोहनलाल शास्त्री साधुवाद ग्रन्थ
[खण्ड सहज मार्ग है। योग की विभिन्न शाखायें जैसे-हठयोग, राजयोग, भक्तियोग, कर्मयोग, लययोग, क्रियायोग और ध्यानयोग-सभी मनुष्य के मन-मस्तिष्क और शरीर पर अपना गहरा प्रभाव डालती है । हठयोग-स्नायुओं को गतिमान करने के लिए
। उदाहरण के लिए हठयोग पर विचार करें। हठयोग एक ऐसी चमत्कारिक विद्या है जिसे आज की मानवता ने फिर से खोज निकाला है । 'योग' शब्द सम्मिलन की ओर संकेत करता है । 'हठ' शब्द सूर्य और चन्द्र की शक्ति ओर संकेत करता है। ये वे दो शक्तियाँ हैं जो मनुष्य के शरीर में रहती है। ये हमारी उस शक्ति की आधारशि है जो हमारा प्राण है जिसकी सहायता से हम सोचते है और अनुभव करते हैं। ये ही दोनों शक्तिर सञ्चालन, हमारे सोचने के ढंग और हमारी प्रत्येक शारीरिक घटनाओं के लिये उत्तरदायी है। अ में सामंजस्य नहीं रहता, तो समझिये कि वही हमारी बीमारियों का, बेचैनी का और अशांति का कारण बनता है। जब इनमें सामंजस्य रहता है और ये मिलकर काम करती हैं तब हमें शान्ति मिलती है और हमारा शरीर स्वस्थ रहता है । हठयोग का अभ्यास करने से इन दोनों शक्तियों का सन्तुलन ठीक रहता है । सम्पूर्ण शरीर शुद्ध हो जाता है । इससे सामंजस्य और शान्ति की स्थितियाँ निर्मित होती हैं।
हमारे शरीर के ढाँचे में जो रीढ़ का हिस्सा है, वहाँ दो नहरें हैं जिनका प्रवाह नीचे से ऊपर की ओर होता है। ये आपस में चार जगहों पर एक-दूसरे से मिलती हैं। हठयोग की भाषा में इन्हें इड़ा और पिंगला नाड़ियों के नाम से जाना जाता है । इड़ा मानसिक शक्ति का सञ्चालन करती है और पिंगला प्राण शक्ति का सञ्चालन करती है । ये दो नाड़ियाँ रीढ़ की हड्डी के नीचे एक विशेष अतीन्द्रिय केन्द्र से निकलती है । इस केन्द्र को "मूलाधार चक्र" कहा जाता है । इसे त्रिकानुत्रिक जालक (sacrococcygeal plexus) कहते हैं। फिर वे एक दूसरे को श्रोणि जालक (pelvic plexus) पर यानी स्वाधिष्ठान चक्र में काटती है। फिर सौर जालक यानो मणिपुर चक्र में, फिर हद-जालक यानी अनाहत चक्र में और फिर ग्रीवा जालक यानी विशुद्धि चक्र में एक-दूसरे को काटती है। अंत में ये दोनों आज्ञा चक्र में यानी मेरु रज्जु शीर्ष में आकर एक-दूसरे से मिल जाती हैं । मन और शरीर सम्बन्धी बीमारियां ।
इड़ा और पिंगला नाड़ियों को प्रकृति ने शरीर और मन की शक्तियां दी हैं। यह शक्ति चक्रों द्वारा शरीर को छोटी-छोटी कोशिकाओं में, हर कंण में, हर अग में पहुँचायी जाती है। अगर इड़ा नाड़ो में किसी तरह को कमजोरी और शक्तिहीनता आती है, तो इड़ा से सम्बन्धित अंगों में कष्ट होता है। इस प्रकार अगर पिंगला नाड़ी में कोई शक्तिहीनता या अवरोध उत्पन्न होता है, तो पिंगला से सम्बन्धित अंग प्रभावित होते है। संक्षेप में हर बीमारी का यही कारण है। बीमारी या तो शारीरिक होतो है या मानसिक । शारीरिक बीमारियों का सम्बन्ध जीवनी शक्ति से होता के मानसिक बीमारियों का सम्बन्ध मन की शक्ति से रहता है। इसलिये इड़ा मानसिक बीमारियों के लिये उत्तरदायी है और पिंगला नाड़ी शारीरिक बीमारियों के लिये । हम केवल मनोकायिक बीमारियों से ही नहीं वरन् कायमानसिक बीमारियों से भी कष्ट उठाते हैं। कभी-कभी बीमारी शारीरिक रूप से शुरू होती है और मानसिक रूप में बदल जाती है और कभी मानसिक रूप से शुरू होकर शारीरिक बन जाती है। इसलिये यह निर्णय करना कठिन हो जाता है कि बीमारी शारीरिक है या मानसिक अथवा दोनों है। आसन और प्राणायाम के प्रयोजन
हठयोग में हर बीमारी को शारीरिक और मानसिक-दोनों रूपों में देखते हैं । इसलिए हठयोग के आसनों को केवल शारीरिक कसरत ही नहीं समझना चाहिये। ये आसन शरीर की वे अवस्थायें और स्थितियां हैं जो स्वाभाविक
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