Book Title: Jaganmohanlal Pandita Sadhuwad Granth
Author(s): Sudarshanlal Jain
Publisher: Jaganmohanlal Shastri Sadhuwad Samiti Jabalpur
View full book text
________________
४]
जीवविचार प्रकरण और गोम्मटसार जीवकांड २५७
उत्तराध्ययन में पृथ्वी के दो भेद अधिक गिनाये गये हैं और मणि के १८ प्रकार बताये हैं। इस प्रकार बादर पृथ्वीकायिक के ४० भेद बताये गये हैं । प्रज्ञापना" का भी यही वर्णन है। इस जीव विचार में धातुओं और स्फटिकमणि-रत्नों का संक्षेपण कर २० भेद ही बताये गये हैं। प्रज्ञापना में इनके वर्ण-रसादि की विविधता से असंख्यात रूप बताये गये हैं । दिगम्बर ग्रन्थों में सम्भवतः सर्वप्रथम पञ्चसंग्रह ने पृथ्वीकायिक के ३६ भेद गिनाये हैं।
___ जलकायिक जीवों के ग्रन्थगत सात भेदों के विपर्यास में, प्रज्ञापनाकार ने १७ भेद बताये हैं। इसमें उन्होंने झरना, कांजी, क्षार, विभिन्न समुद्रों के जल आदि को भी परिगणित किया है । दिगम्बराचार्य अमृतचन्द्र और उत्तराध्ययन ने केवल पांच भेद बताये हैं । वट्टकेर जल के ७ और पृथ्वी के ३६ भेद मानते हैं।
शान्तिसूरि अग्निकायिक जीवों के ८ भेद मानते हैं। इसके विपर्यास में दशवकालिक एवं उत्तराध्ययन ७, प्रज्ञापना १२ तथा मूलाचार* ६ भेद गिनाते हैं ।
इसी प्रकार जहाँ शान्तिसूरि वायुकायिकों के ८ भेद बताते हैं, वहीं मूलाचार ७, उत्तराध्ययन ६ एवं प्रज्ञापना १९ भेद निरूपित करते है।
सारणी २ : वनस्पतिकायिकों के भेद (i) बादर साधारण वनस्पति
(ii) बादर प्रत्येक वनस्पति १. कंद, (प्याज, लहसुन आदि)
१. फल २. अंकुर
२. पुष्प ३. किसलय (कोंपल)
३. छल्ली या छल्ल ४. पनक (लकड़ी के फंगस)
४. काष्ठ ५. शेवाल (काई)
५. जड़ ६. भूमिस्फोटक (कुकुरमुत्ता)
६. पत्र ७. आर्द्रकत्रिक (अदरख, हल्दी, कचूर)
७. बीज ८. गाजर
(iii) विशेष प्रत्येक वनस्पतियाँ ९. मोथा (नागरमोथा)
१. वृक्ष : एकबीज ३०, बहुबीज ३३ १०. बथुआ की भाजी
२. गुच्छ ४७ ११. थेग (बल्वनुमा मड़)
३. गुल्म २४ १२. पल्यंक
४. लता १० १३. कोमल फल (पकने के पूर्व)
५. बल्ली ४१ १४. गूढ शिर पत्ते
६. पर्वग १९ १५. कांटेदार पौधे
७. सृण १८ १६. गुग्गुल
८. वनलता १७ १७. गिलोय (गडूची)
९. हरित शाक २८ १८. छिन्न-रुह वनस्पतियाँ
१०. औषधि-धान्य २७ १९. कुमारी (आलुअ)
११. जलोत्पन्न वनस्पति २६ १२. कुकुरमुत्ता (कुहन) १०
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org