Book Title: Jaganmohanlal Pandita Sadhuwad Granth
Author(s): Sudarshanlal Jain
Publisher: Jaganmohanlal Shastri Sadhuwad Samiti Jabalpur
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शाकाहारी आहारों से ऊर्जा डा० मधु ए० जैन, एम० डी० प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, बमनी (मडला)
___ अहिंसा-प्रधान जैनधर्म के अनुसार, हमारा आध्यात्मिक विकास कुछ नतिक आचरण और प्रवृत्तियों पर ही आधारित है। हमारा जीवन आहार के बिना अधिक दिनों तक नहीं चल सकता और आहार भी हमारी अनेक प्रवृत्तिमनोवृत्ति को प्रभावित करने वाला घटक है, फलतः इसके सम्बन्ध में जनों ने शाकाहार का प्रवर्तन एवं संवर्धन किया है। आज का वैज्ञानिक जगत भी इस विचार को प्रयोगिक समर्थन दे रहा है। यह प्रसन्नता की बात है कि इस साक्ष्य से शाकाहार की व्यापकता बढ़ रही है । इससे इस सम्बन्ध में अनेक भ्रान्तियां भी दूर हो रही हैं। १. आहार के कार्य और गुणवता
___मनुष्य को आहार की आवश्यकता निम्न कारणों से होती है : (i) शरीर के आधारभूत कार्य (ii) शरीर की भौतिक और विशिष्ट गतिशील क्रियायें (iii) शरीर कोशिकाओं का विकास, संरक्षण, पुनर्जनन (iv) शरीर-क्रियातन्त्र का नियमन (v) रोग-प्रतीकार क्षमता। आहार शरीरतन्त्र में होनेवाली अनेक रासायनिक क्रियाओं के माध्यम से उपरोक्त क्रियाओं को संपन्न करने के लिये समुचित ऊर्जा प्रदान करता है। यह ऊर्जा किलोकैलोरी ( किकै० ) में व्यक्त की जाती है। यह पाया गया है कि सामान्य स्थिति में आधारभूत क्रियाओं के लिये ०.८ किक०/किग्रा-शरीर भार/ .. घंटे की ऊर्जा आवश्यक होती है। यह विश्रान्ति तथा निद्रा के समय के लिये सही है। शारीरिक क्रियाओं में १.२ किकै०/किग्रा घंटे की दर से अतिरिक्त ऊर्जा आवश्यक होती है। विशिष्ट गतिशील क्रियाओं में भी लगभग ७% अतिरिक्त ऊर्जा चाहिये। इस प्रकार, पचपन किलो भार एवं १.६ वर्गमीटर क्षेत्रफल वाले सामान्य भारतीय के लिये दैनिक ऊर्जा की औसत आवश्यकता निम्न होगी :
(अ) निद्रा, ८ घंटे ( आधारी) : ५५४०८४८: ३५२०० के. (ब) अन्य क्रियायें, १६ घंटे : ५५४(०.८+१२) १६ : १७६०=०० के०
२११२.०० १४८-००
(स) विशिष्ट गतिशील क्रिया
२२६०3०० इस परिकलन में जलवायु, शरीर-संघटन, आकार, वय, लिंग या अन्य कारणों से १०% परिवर्तन हो सकता है। ऊर्जा की यह आवश्यकता ३५-५५ वर्ष की उम्र में प्रति दस वर्ष में ५% कम हो जाती है। उत्तरवर्ती उम्र में यह १०% प्रति दस वर्ष कम होती है।' आदर्श आहार वह है जो न केवल उपरोक्त ऊजी की पूर्ति करे, अपि उसमें वे आवश्यक तत्व भी समुचित मात्रा में होने चाहिये जो हमारे जीवन को स्वस्थ, उत्साहपूर्ण एवं विकासी बनाते हैं । आहार का यह कार्य उसके शरीर-क्रियात्मक कार्य का प्रतीक है। इसके अतिरिक्त, आहार के सामाजिक और मनोवैज्ञानिक कार्य भी होते हैं।
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