Book Title: Jaganmohanlal Pandita Sadhuwad Granth
Author(s): Sudarshanlal Jain
Publisher: Jaganmohanlal Shastri Sadhuwad Samiti Jabalpur
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णमोकार मंत्र और मनोविज्ञान
(स्व० ) डा० नेमीचंद्र शास्त्री
आरा
णमोकार-मंत्र का अर्थ
वैदिक धर्मानुयायियों में जो ख्याति और प्रचार गायत्री मन्त्र का है, बौद्धों में त्रिशरण मन्त्र का है, जनों में वही ख्याति और प्रचार णमोकार मन्त्र का है। समस्त धार्मिक और सामाजिक कृत्यों के आरम्भ में इस महामन्त्र का उच्चारण किया जाता है । जैन-सम्प्रदाय का यह दैनिक जाप मन्त्र है। इस मन्त्र का प्रचार तीनों सम्प्रदायों-दिगम्बर, श्वेताम्बर और स्थानकवासियों में समान रूप से पाया जाता है। तीनों सम्प्रदाय के प्राचीनतम साहित्य में भी इसका उल्लेख मिलता है । इस मन्त्र में पांच पद, अट्ठावन मात्रा और पैतीस अक्षर हैं । मन्त्र निम्न प्रकार हैं :
णमो अरिहंतार्ण, णमो सिद्धाणं, णमौ आइरियाणं ।
णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सफ्व-साहूणं ॥ स्वर और व्यंजनों का विश्लेषण करने पर प्रतीत होता है कि "णमो अरिहंताणं, ६ व्यंजन; णमो सिद्धाणं, ५ व्यंजन; णमो आइरियाणं, ५ व्यंजन; णमो उवज्झायाणं, ६ व्यंजन; णमो लोए सव्वासाहूणं, ८ व्यंजन, इस प्रकार इस मन्त्र में कुल ६+५+५+६+ ८3३० व्यंजन हैं। इस मन्त्र में सभी वर्ण अजन्त हैं, यहाँ हलन्त एक भी वर्ण नहीं हैं, अतः ३५ अक्षरों में ३५ स्वर मानने चाहिए। पर वास्तविकता यह है कि ३५ अक्षरों के होने पर भी वहाँ स्वर ३४ हैं। इस प्रकार कुल मन्त्र में ३५ अक्षर होने पर भी ३४ ही स्वर रहते हैं। कुल स्वर और व्यंजनों की संख्या ३४+३० % ६४ हैं। मूल वर्गों की संख्या भी ६४ ही है। प्राकृत भाषा के नियमानुसार अ, इ, उ, और ए मूल स्वर तथा ज झ ण त द ध य र ल व स और ह-ये मूल व्यंजन इस मन्त्र में निहित हैं। अतएव ६४ अनादि मूल वर्गों को लेकर समस्त श्रतज्ञान के अक्षरों का प्रमाण निकाला जा सकता है।
णमोकार मन्त्र के जाप करने की विधि
णमोकार मन्त्र का जाप करने के लिए सर्वप्रथम आठ प्रकार की शुद्धियों का होना आवश्यक है। १. द्रव्य शुद्धिपंचेन्द्रिय तथा मन को वश कर कषाय और परिग्रह का शक्ति के अनुसार त्याग कर कोमल और दयालुचित्त हो जाप करना । यहाँ द्रव्य शुद्धि का अभिप्राय पात्र की अन्तरंग शुद्धि से हैं । जाप करने वाले को यथाशक्ति अपने विकारों को हटाकर ही जाप करना चाहिए । अन्तरंग से काम, क्रोध, लोभ, मोह, मान, माया, आदि विकारों को हटाना आवश्यक है । २. क्षेत्रशुद्धि-निराकुल स्थान, जहाँ हल्ला-गुल्ला न हो तथा डांस-मच्छर आदि बाधक जन्तु न हों । चित्त में क्षोभ उत्पन्न करने वाले उपद्रव एवं शीत-उष्ण की बाधा न हो, ऐसा एकान्त निर्जन स्थान जाप करने के लिए उत्तम हैं। घर के किसी एकान्त प्रदेश में जहां अन्य किसी प्रकार की बाधा न हो और पूर्ण शान्ति रह सके, उस स्थान पर भी जाप किया जा सकता है। ३. समय शुद्धि-प्रातः, मध्याह्न और सन्ध्या समय कम से कम ४५ मिनट
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