Book Title: Jaganmohanlal Pandita Sadhuwad Granth
Author(s): Sudarshanlal Jain
Publisher: Jaganmohanlal Shastri Sadhuwad Samiti Jabalpur
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ज्ञान प्राप्ति की आगमिक एवं आधुनिक विधियों का तुलनात्मक समोनग २२३ विवरणों की तुलना से यह प्रकट होता है कि अजोव तत्व की परिभाषा करने में हो काफी अंतर है । यद्यपि जोवन-ऊर्जा के अंतर्गत अनेक वैज्ञानिक प्रक्रियायें समाहित मानो जा सकती हैं, पर शास्त्रों में उनका विवरण गुणात्मक ही अधिक है, उसमें परिमाणात्मकता एवं सक्षमता कम है। इसके अतिरिक. विभिन्न शोर्षकों के अंतर्गत प्राप्त विवरण भौतिक अधिक हैं, उनमें रासायनिक प्रक्रमों का प्रायः अभाव है। इस प्रकार, ज्ञान-द्वारों एवं विधियों में वाह्य समरूपता के बावजूद भी ज्ञेय-संबंधी शास्त्रीय एवं बैज्ञानिक विवरणों में काफी अन्तराल पाया जाता है।
सारणी ५ : विभिन्न शीर्षकों के अन्तर्गत अजीव तत्त्व के शास्त्रीय एवं वैज्ञानिक विवरण
शीर्षक
शाखीय विवरण
वैज्ञानिक विवरण
१. नाम (निर्देश)
२. उत्पादक सामग्री
(साधन)
अजीव-जिसमें १० प्राण या चेतना अजीव-जिसमें प्रोटोप्लाज्म, आहार, न हो।
विसर्ग, जन्म, विकास, मृत्यु, चयापचय, अनुकूलन, संवेदनशीलता, श्वासोच्छवास एवं स्वतोगति न हो । अनियत आकार,
विस्तार। (अ) यह अणु एवं परमाणुओं के संयोग व यह अजीव परमाणुओं और अणुओं के
वियोग से उत्पन्न होता है । संयोग-वियोग से उत्पन्न होता है। (ब) धर्म (ईथर), अधर्म (आकर्षण), कभी कभी यह सजीव पदार्थों से भी
आकाश एवं काल के कारण गति, उत्पन्न होता है ( राख आदि )। स्थिति, परिवर्तन और अवगाहन (ब) ईथर आदि वास्तविक नहीं हैं, मात्र होता है।
निर्देश बिन्दु हैं।
३. गुण (अ) आधार
(क्षेत्र, स्पर्शन)
पदार्थ आकाश, अन्य द्रव्यों एवं स्वयं में पदार्थों के आधार, स्थिति, भेद-प्रभेद, अधिष्ठित होता है।
आकार, विस्तार अनेक प्रकार के होते यह एक से अनंत समय तक बना रहता हैं और परिवर्ती होते हैं।
(ब) स्थिति (आयु)
(स) भेद-प्रभेद
यह अनेक प्रकार से एक से असंख्यात (विधान) रूपों में वर्गीकृत किया जा सकता है। (द) पदार्थों या अजोव से जोव को उत्पत्ति
संभव है। ४. उपयोग
पदार्थ जीव एवं अजीव-सभी के लिये अजीव पदार्थ जीवन एवं जीव-दोनों के (स्वामित्व)
विविध रूपों में उपयोगी होता है। लिये उपयोगी होता है। ज्ञान प्राप्ति में सहयोगी कारक
ज्ञानप्राप्ति के लिये उपयोगी चरणों में प्रथम चरण सर्वाधिक महत्वपूर्ण है । इसके अनुसार, किसी वस्तु के विषय में ज्ञान प्राप्त करने के लिये कम से कम दो मुख्य कारक होने चाहिए-इंद्रियां और पदार्थ या ज्ञेय वस्तु । इन दोनों के मध्य संपर्क के लिये प्रकाश भी होना चाहिये । अन्य कारक भी हो सकते हैं। सर्वप्रथम यह संपर्क इन अनेक कारकों की उपस्थिति में भौतिक इंद्रियों एवं पदार्थ के बीच होता है। इस संपर्क से भावेन्द्रियां उत्तेजित होती है और वे इस संपर्क की
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