Book Title: Jaganmohanlal Pandita Sadhuwad Granth
Author(s): Sudarshanlal Jain
Publisher: Jaganmohanlal Shastri Sadhuwad Samiti Jabalpur
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[खण्ड
१६६ पं० जगन्मोहनलाल शास्त्री साधुवाद ग्रन्थ
९. देखिये, निर्देश ३, पेज २०६१ १०. नेमचंद्र सिद्धान्तचक्रवर्ती; गोम्मटसार जीवकांड, परमश्रुत प्रभावक मंडल, अगास, १९७२, पेज २२५ ११. देखिये, निर्देश ४, अध्ययन ३४, पेज ६५० १२. युवाचार्य महाप्रज्ञ; आभामंडल, तुलसी अध्यात्म नीड, लाडनूं, १९८४, पेज १३, ४१ १३. देखिये, निर्देश ८, सूत्रकृतांग, ४/१७ १४. एस० जी० जे० ओसले; द पावर आव दो रेज, पेज ४३ १५. वही ; कलर मेडीटेशन, पेज १५ १६. महर्षि व्यास महाभारत, शान्ति पर्व, २८८/५ १८. जे० डोडसन हैस; कलर इन दो ट्रीटमेंट आव डिजीज, पेज ६१ १९. देखिये, निर्देश १५, पेज १७ २०. देखिये निर्देश ६ पेज २३९-८८ २१. युवाचार्य महाप्रज्ञ, लेश्या ध्यान, तुलसी अध्यात्म नीडं, लाडनू , १९८४, पेज ५३ २२. देखिये, निर्देश १२, पेज ८५ २३. सुधर्मा स्वामी, भगवती सूत्र ५, सा० सं० रक्षक संघ, सैलाना, १९७०, पेज २३६? २४. देखिये निर्देश १३, पेज ४/७०
जैसे कांटा चुभने पर सारे शरीर में पीड़ा होती है, जैसे कांटे के निकल जाने पर शरीर निःशल्य हो जाता है। वैसे ही अपने दोषों को न प्रकट करने वाला मायावी दुःखी होता है, वैसे ही गुरु के समक्ष दोष प्रकट कर सुविशुद्ध सुखी हो जाता है ।
-समणसुत्तं
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