Book Title: Jaganmohanlal Pandita Sadhuwad Granth
Author(s): Sudarshanlal Jain
Publisher: Jaganmohanlal Shastri Sadhuwad Samiti Jabalpur
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१६४ पं. जगन्मोहनलाल शास्त्री साधुवाद ग्रन्थ
[खण्ड
करना होगा। रंग ध्यान द्वारा चतन्य केन्द्रों को जगाना होगा क्योंकि केन्द्र (चक्र ) रंग शक्ति के विशिष्ट स्रोत है। प्रत्येक चक्र भौतिक वातावरण और चेतना के उच्च स्तरों में से अपनी विशिष्ट रंग-किरणों के माध्यम से प्राण ऊर्जा की विशिष्ट तरंग को शोषित करता है। लेश्या ध्यान में आनन्द केन्द्र पर हरे रंग का, विशुद्धि केन्द्र पर नीले रंग का, दर्शन केन्द्र पर अरुण रंग का, ज्ञान केन्द्र पर पीले रंग का तथा ज्योति केन्द्र पर सफेद रंग का ध्यान किया जाता है।" कृष्ण, नोल और कापोत लेश्याएं अशुभ हैं। इसलिये उन्हीं केन्द्रों पर विशेष रूप से ध्यान किया जाता है जिनसे तेजस, पद्म और शुक्ल लेश्याएं जागती हैं। इसलिये तीन शुम लेश्याओं का दर्शन केन्द्र, ज्ञान केन्द्र और ज्योति केन्द्र पर क्रमशः लाल, पीला और सफेद रंग का ध्यान किया जाता है। इन तीनों को प्रशस्त रंगों के रूप में स्वीकार किया गया है। २२
तेजोलेश्या ध्यान : जब तेजोलेश्या का ध्यान किया जाता है तो हम दर्शन केन्द्र पर बाल सर्य जैसे लाल रंग का ध्यान करते हैं। लाल रंग अग्नि तत्त्व से सम्बन्धित है जो कि ऊर्जा का सार है। यह हमारी सारी सक्रियता, तेजस्विता, दीप्ति. प्रवृत्ति का स्रोत है। दर्शन केन्द्र पिट्यूटरी ग्लैंड का क्षेत्र है, जिसे महाग्रन्थि कहा जाता है, जो अनेक ग्रन्थियों पर नियन्त्रण करती है। पिट्यूटरी ग्लैंड सक्रिय होने पर एडोनल ग्रन्थि नियन्त्रित हो जाती है. जिसके कारण उभरने वाले काम वासना, उत्तेजना, आवेग आदि अनुशासित हो जाते हैं। दर्शन केन्द्र पर अरुण रंग के ध्यान करने से तेजस लेश्या के स्पन्दनों की अनुभूति से अन्तर्जगत की यात्रा प्रारम्भ होती है। आदतों में परिवर्तन शुरू होता है। मनोविज्ञान बताता है कि लाल रंग से आत्मदर्शन की यात्रा शुरू होतो है। आगम कहता है-अध्यात्म की यात्रा तेजोलेश्या से शुरू होती है। इससे पहले कृष्ण, नील व कापोत तीन अशुम लेश्याएं काम करती हैं, इसलिये व्यक्ति अन्तर्मुखी नहीं बन पाता।
तेजस लेश्या तेजस शरीर जब जगता है, तब अनिर्वचनीय आनन्दानुभूति होती है। पदार्थ प्रतिबद्धता छूटती है। मन शक्तिशाली बनता है। ऊर्जा का उर्ध्वगमन होता होता है। आदमी में अनुग्रह विग्रह (वरदान और अभिश की क्षमता पैदा होती है। सहज आनन्द को स्थिति उपलब्ध होतो है। इसलिये इस अवस्था को "सुखासिका" कहा गया है। आगमों में लिखा है कि विशिष्ट ध्यान योग की साधना करने वाला एक वर्ष में इतनी तेजोलेश्या को उपलब्ध होता है जिससे उत्कृष्टतम भौतिक सुखों की अनुभूति अतिक्रान्त हो जाती है। उस आनन्द को तुलना किसी भी भौतिक पदार्थ से प्राप्त नहीं हो सकती।९३ तेजोलेश्या आर अतोन्द्रिय ज्ञान का भो गहरा सम्बन्ध है। तेजोलेश्या की विद्युत धारा से चैतन्य केन्द्र जागृत होते हैं और इन्ही में अवधि ज्ञान अभिव्यक्त होता हैं।
पगलेश्या-ध्यान
पद्मलेश्या का रंग पीला है। पीला रंग न केवल चिन्तन, बौद्धिकता व मानसिक एकाग्रता का प्रतीत है, बल्कि धार्मिक कृत्यों में की जाने वाली भावनाओं से भी सम्बन्धित है। पीला रंग मानसिक प्रसन्नता का प्रतीक है। भारतीय योगियों ने इसे जीवन का रंग माना है। सामान्य रंग के रूप में यह आशा-वादिता, आनन्द और जीवन के प्रति संतलित दृष्टिकोण को बढ़ाता है। मनोविज्ञान मानता है कि पीले रंग से चित्त की प्रसन्नता प्रकट होता है और दर्शन शक्ति का विकास होता है। दर्शन का अर्थ है-साक्षात्कार। लेश्याध्यान में पीले रंग का ध्यान ज्ञान केन्द्र पर किया जाता है। ज्ञान केन्द्र शरीर-शास्त्रीय भाषा में वृहद् मस्तिष्क का क्षेत्र है। इसे हठयोग में सहस्रार चक्र कहा जाता है। जब हम चमकते हए पीले रंग का ध्यान करते है, तब जितेन्द्रिय होने की स्थिति निर्मित होती है। कृष्ण और नील लेश्या में व्यक्ति अजितेन्द्रिय होता है। पद्मलेश्या के परमाणु ठीक इसके विपरोत हैं। पद्यलेश्या ऊर्जा के उत्क्रमण की प्रक्रिया है। इसके जागने पर कषाय चेतना सिमटतो है। आत्म नियन्त्रण पैदा होता है।
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