Book Title: Jaganmohanlal Pandita Sadhuwad Granth
Author(s): Sudarshanlal Jain
Publisher: Jaganmohanlal Shastri Sadhuwad Samiti Jabalpur
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सा विद्या या विमुक्तये युवाचार्य महाप्रज्ञ
शिक्षा जगत का प्रसिद्ध सूत्र है-“सा विद्या या विमुक्तये"-विद्या वही है जिससे मुक्ति सधे । मुक्ति के अर्थ को हमने एक सीमा में बांध दिया। हमने उसे मोक्ष के अर्थ में देखा। मोक्ष की बात बहुत आगे की है, मरने के बाद की है। जिसको जीते जी मुक्ति नहीं मिलती, उसको मरने के बाद भी मुक्ति नहीं मिल सकती। जब वर्तमान क्षण में मुक्ति मिलती है तो वह आगे भी मिल सकती है। जो वर्तमान क्षण में बंधा रहता है, उसे आगे मुक्ति मिलेगी, ऐसी कल्पना भी नहीं की जा सकती। मुक्ति का एक व्यापक सन्दर्भ है । उसे हमें समझना है। उसे समझ लेने पर हमारा दृष्टिकोण बहुत कार्यकर होगा।
शिक्षा के क्षेत्र में मुक्ति का पहला अर्थ है-अज्ञान से मुक्त होना । अज्ञान बहुत बड़ा बन्धन है। अज्ञान के कारण ही व्यक्ति अनेक अनर्थ करता है। इसे आवरण माना गया है। आवरण बन्धन है। शिक्षा का पहला काम है-इस बन्धन से मुक्ति दिलाना, अज्ञान से मुक्त करना। इस परिप्रेक्ष्य में हम कहेंगे-“सा विद्या या विमुक्तये"शिक्षा वह है जो अज्ञान से मुक्त करती है।
मुक्ति का दूसरा सन्दर्भ होगा-संवेगों के अतिरेक से मुक्ति । आदमी में संवेग का अतिरेक होता है और वह आदमी को पकड लेता है. आसानी से नहीं छटता। जब तक व्यक्ति वीतराग अवस्था को प्राप्त नहीं हो जाता तब तक वह संवेगों से पूर्णरूपेण छुटकारा नहीं पा सकता। संवेगों के अतिरेक के कारण आदमी न परिवार में, न समाज में और न गाँव में फिट हो सकता है। वह दूसरों के लिये सिरदर्द बन जाता है। ऐसी स्थिति में यह स्वयं प्राप्त होता है कि शिक्षा उसे संवेगों के अतिरेक से मुक्ति दिलाये। इसका अर्थ है कि मनुष्य में संवेगों पर नियन्त्रण करने की क्षमता बढे जिससे कि संवेगों की प्रचरता न रहे। वे एक सीमा में आ जायें।
मुक्ति का तीसरा सन्दर्भ होगा-संवेदों के अतिरेक से मुक्ति । इन्द्रियों की जो संवेदनाएं हैं, उनका अतिरेक भी समस्याएं पैदा करता है और समाज में अनेक उलझनें उत्पन्न करता है। शिक्षा का यह महत्वपूर्ण कार्य है कि वह संवेदनाओं के अतिरेक से व्यक्ति को मुक्ति दिलाये।
मुक्ति का चौथा संदर्भ होगा-धारणा और संस्कार से मुक्ति। व्यक्ति धारणाओं और अजित संस्कारों के कारण दुःख पाता है । शिक्षा का कार्य है कि वह इनसे मुक्ति दिलाए ।
___ मुक्ति का पांचवा संदर्भ होगा-निषेधात्मक भावों से मुक्ति। व्यक्ति का नेगेटिव एटिट्यूड समस्या पैदा करता है । इससे मुक्त होना भी बहुत आवश्यक है।
इन पांच संदर्भो में मुक्ति को देखने पर “सा विद्या या विमुक्तये' का सूत्र बहुत स्पष्ट हो जाता है। वास्तव में विद्या वही होती है जो मुक्ति के लिए होती है, जिससे मुक्ति सधती है। हम कसौटी करें और देखें कि क्या आज की
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