Book Title: Jaganmohanlal Pandita Sadhuwad Granth
Author(s): Sudarshanlal Jain
Publisher: Jaganmohanlal Shastri Sadhuwad Samiti Jabalpur
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ध्यान का वैज्ञानिक विवेचन १३५ संचालन करता है। इसके विपर्यास में, बाँया गोलार्ध बुद्धि, विचार, तकं, निर्णय, संगठन, व्यवस्था तथा प्राणशक्ति का प्रतीक है । यह केन्द्रीय तन्त्रिका-तन्त्र एवं अनुकम्पी नाड़ी संस्थान या ऐच्छिक क्रियाओं का संचालन करता है ।
__ये दोनों गोलार्ध महासंयोजक (कोरपस कैलोसम) के द्वारा परस्पर में जुड़े रहते हैं। इन गोलार्धा की कोशिकायें भी सूक्ष्म तन्तुओं एवं सेरीटोनिन नामक चिपकावक पदार्थ के माध्यम से एक-दूसरे से जुड़ी रहतो हैं। ये १२० मीटर/सेकेण्ड की दर से ज्ञानवाही एवं क्रियावाही सूचनाओं का आदान-प्रदान करती हैं। ये गोलार्ध और उसकी तन्त्रिकायें अनुमस्तिष्क और अन्य लघु घटकों के माध्यम से मेरुदण्ड एवं सुषुम्ना के सम्पर्क में रहते हैं। सुषुम्ना का दूसरा सिरा नेरुदण्ड के नीचे रहता है जो मस्तिष्क के संवेदनों के संचार पथ का काम करता है।
मस्तिष्क की कोशिकाओं और उनसे बनी तन्त्रिकाओं के दो विशिष्ट लक्षण पाये गये हैं-(१) दोघं जीविता एवं परिवेश-संवेदन तथा (२) उच्च चयापचयी सक्रियता । अनुसन्धानों से यह पाया गया है कि
(i) श्वासोच्द्यास के अन्तर्गमित वायु का पंचमांश केवल मस्तिष्कीय कोशिकाओं को ही अपनो सक्रियता बनाये रखने में सहायक होता है।
(i) मस्तिष्क का दाया गोलार्ध हमारे बाँये शरीगंगों को प्रभावित करता है। इसी प्रकार बाँया भाग दक्षिणांगों को प्रभावित करता है।
(it) पश्चिमी लोगों के मस्तिष्क का बाँया भाग अधिक सक्रिय होता है। पूर्वी क्षेत्र के व्यक्तियों का दाहिना गोलार्ध अधिक सक्रिय होता है ।
(iv) मानव अपने मस्तिष्क की क्षमता का केवल दश प्रतिशत ही उपयोग कर पाता है।
मस्तिष्क की क्रिया-विधि को व्याख्या रासायनिक एवं विद्युत आधारों पर की जाने लगी है । इसको कोशिका एवं स्नायुओं का औसत प्रतिशत संघटन निम्न पाया गया है :
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(ii) लिपिड (ii) प्रोटीन (iv) सोडियम-पोटेशियम के लवण
१०-१२ ७- ८ <१
कोलस्टेरोल, कुछ फास्फोलिपिड, ऐमोनो लिपिड । ग्लोबुलिन, न्यूक्लियो प्रोटीन, न्पूरोकेरेटोन ।
मस्तिष्क की सजीव कोशिकाओं को सक्रिय बनाये रखने के लिये रक्त के माध्यम से ग्लूकोज और श्वासों के माध्यम से
ऑक्सीजन की समुचित मात्रा मिलना अनिवार्य हैं। यह अनेक कारणों से असंतुलित हो सकती है-(i) भोजन को विविधता (ii) परिवेश (iii) भावनात्मक स्थिति और (iv) होर्मोन स्रावों में अव्यवस्था आदि । फलतः इनको सक्रियता एक रासायनिक प्रक्रम है जिसमें सदैव ऊर्जा उत्पन्न हाती है । इसे ही शास्त्रों में प्राण या मनःशक्ति कहा गया है ।
इसी प्रकार स्नायुओं के द्वारा संवेदनों का संचार भी प्रमुखतः एक जटिल रासायनिक प्रक्रिया है। इसके अनुसार, जब किसी न्यूरान के संकेत उसके एक्सान तन्तुओं द्वारा दूसरे न्यूरानों को संचारित होते हैं, तब प्रेषक न्यूरानतंत्रिका के सीमान्त पर कुछ न्यूरोहोर्मोन उत्पन्न होते हैं। इनमें ऐसीटिलकोलीन, ऐडैनलोन, वैसोप्रेसोन तथा ऑक्सीटोसिन आदि प्रमुख हैं। अन्य तंत्रों में भी डोपैमीन, ग्लूटमिक अम्ल, इन्स्युलिन, गामा-ऐमिनो ब्यूटिरिक अम्ल, सैरीटोनिन तथा कुछ ऐन्जाइम उत्पन्न होते हैं। ये न्यूरोहोर्मोन अन्तराकोशिकीय क्षेत्र में विपरित होकर संवेदनों या उत्तेजनों को दूसरी कोशिकाओं पर संचारित करते हैं।
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