Book Title: Jaganmohanlal Pandita Sadhuwad Granth
Author(s): Sudarshanlal Jain
Publisher: Jaganmohanlal Shastri Sadhuwad Samiti Jabalpur
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सूझबूझ एवं वाकचातुर्य के धनी पंडितजी के कुछ शिक्षाप्रद संस्मरण डा० के० एल० जैन, रायपुर समाज में विद्वानों को उपेक्षा एवं अवमानना
पंडित जगन्मोहन लाल जी शास्त्री भी अपने व्यावहारिक जीवनकाल में अनेक बार समाज की उपेक्षा एवं अवमानना के शिकार हुए हैं । ऐसी स्थितियों में भी उनकी आशुबुद्धि एवं चतुरता उनकी प्रतिष्ठा का ही कारण बनी।
एक बार उन्हें पर्युषण पर्व में प्रवचनार्थ बम्बई के भूलेश्वर मंदिर की ओर से आमंत्रित किया गया। जब पंडित जी वहाँ पहुँचे, तो वहाँ के पदाधिकारी ने राशन-सामग्री की कठिनाई दूर करने हेतु राशन कार्ड बनवाने (अस्थायी) के लिये पंडित जी से खाद्य एवं आपूर्ति विभाग के कार्यालय में चलने का निवेदन किया। वे इस स्थिति की कल्पना तक नहीं कर सकते थे कि बम्बई जैसे नगर में पहले ही दिन राशन कार्यालय से राशन कार्ड बनवाने पर ही वहाँ की समाज से भोजन प्राप्त होगा। सोचकर उन्होंने पदाधिकारी जी कहा, "मैं शुद्ध भोजन करता हूँ और अपने पास खाद्य सामग्री भी रखता हूँ। आप मेरी चिन्ता न करें।"
उन्होंने तत्काल कटनी तार किया और दूसरे ही दिन उनके पास पर्याप्त खाद्य सामग्री पहुंच गई। इस तात्कालिक सूझ-बूझ से पंडित जी के आत्मगौरव की रक्षा तो हुई ही, इसके साथ ही, पता चलने पर बम्बई समाज के लोगों ने उपरोक्त पदाधिकारी को भी प्रताडित किया और पंडित जी से क्षमायाचना की।
सयोग से, उन्हीं दिनों अहार क्षेत्र के दो प्रचारक विद्वान् वहाँ पहुँचे। पंडित जी ने समाज के लोगों से उनके भोजनादि की व्यवस्था के लिये संकेत दिया। एक सज्जन बोले-इनकी व्यवस्था तो होटल में करा देंगे। पंडित जी ने कहा, "ये पर्युषण के दिन हैं। फिर भी, उन विद्वानों को न केवल होटल में भोजन हेतु भेजा गया, अपितु अपने भोजन का बिल भी उन्हें ही चुकाना पड़ा।
एक घटना पंडित जी के अध्ययन काल की पन्ना, म. प्र. से संबंधित है। एक बार अहिंसा प्रचारिणी सत्ता की ओर से पंडित जी पं रमानाथ जी के साथ धर्म-प्रचार हेतु पन्ना गये। उन दिनों वहाँ १०-१५ घर जैनों के थे। वे मंदिर में प्रवचन भी करते थे। यातायात संबंधी कठिनाई के कारण वहाँ उन्हें कुछ अधिक दिन रुकना पड़ा। गर्मी के दिन थे, तो पानी भी किंचित् कष्ट साध्य था। उन दिनों समाज के किसी भी व्यक्ति ने इन दोनों को भोजन पानी तक के लिये नहीं पूछा । वे गुड़-चिरोंजी खाकर और आम चूसकर अपने दिन बिताते थे।
इनके निवास के सामने एक ब्राह्मणी रहती थी। उसने उनसे पूछा, "तुम लोग क्या खाते-पीते हो? कुछ बनाते भी नहीं हो।" पंडित जी ने उसे सही स्थिति बनाई। उस दिन उसने पानी छानकर भोजन बनाया और दोनों को अपने घर भोजन कराया। शाम को वह ब्राह्मणी वहाँ के प्रमुख जैन के घर गई और बोली, "तुम्हारा समाज कैसा है? तुम पंडितों और विद्यार्थियों को दो चार दिन भोजन भी नहीं करा सकते ?"
एक अन्य अवसर पर, नवयुवक सभा, अजमेर के मंत्री ने महावीर जयन्ती के अवसर पर पंडित जी को आमंत्रित किया। पंडित जी वहाँ गये और चार-पांच दिन रहे। वहां उन्होंने सर्वधर्म सम्मेलन एवं मुस्लिम
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