Book Title: Jaganmohanlal Pandita Sadhuwad Granth
Author(s): Sudarshanlal Jain
Publisher: Jaganmohanlal Shastri Sadhuwad Samiti Jabalpur
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विनोदी सहयोगी का साधुवाद पंडित फूलचंद्र सिद्धान्त शास्त्री रुड़की (उ० प्र०)
पंडित जी हमारे सहपाठी और सहयोगी हैं। वे हमलोगों में 'सिरमौर' है। सबसे पहले मैंने उन्हें मोरेना में देखा था। अपने स्वभाव के कारण वे प्रायः हमें आश्चर्य में डालने से नहीं चूकते थे। वे बड़े विनोदप्रिय है। एक बार मैं सो रहा था। वे अपने घर से लौट कर आये और रात में ही उन्होंने सोते समय ही मेरी छाती पर बैठकर हलके से मेरा गला दबा दिया। मैं जब लड़खड़ाती आवाज में चिल्लाने लगा, तो वे हंसे और मुझ छोड़ दिया। इसी प्रकार एक बार मैं एक खेत में मल-विसर्जन कर रहा था। वे पीछे से आये और मेरा पानी भरा लोटा उठाकर दूर खड़े हो गये । गिड़गिड़ाने पर ही मुझे लोटा वापस मिल सका।
वे कुशाग्र बुद्धि है और बात बनाने में अति चतुर हैं । वे दूसरों के छिद्रों के गोपन का भी कर्तव्य निभाते है। उन्होंने अपने पिता के पदचिन्हों पर कब चलना स्वीकार किया, यह बात मोरेना में तो दिखी नहीं। बाद की घटना होनी चाहिये । पर आज वे व्रती श्रावक हैं और व्रतभंग करने में विश्वास नहीं रखते।
वे वक्तव्यकला में भी अतिचतुर हैं। एक बार मैं और वे दोनों खुरई आये हुए थे। मेरे भाषण के बाद उनका भी भाषण हुआ । उन्होंने जिस कलर और कमाल से वह भाषण दिया, उससे मैंने उनसे हार मान ली।
वे सहृदय हैं, जैन मात्र के प्रति उनमें आदर भाव है। वे अच्छे लेखक भी हैं। उनके अध्यात्म अमृत कलश' का प्रकाशन चंद्रप्रभ दि जैन मंदिर, कटनी से हुआ है। यह एक दिशा बोध है । यदि जैन मंदिर मात्र आय के साधन बढ़ाने के साथ जिनबिंबों की रक्षा के अतिरिक्त जिनवाणी का भी प्रचार-प्रसार करें, तो विश्व में जैनधर्म के प्रचार में चार चांद लग जावें। ईसाई इस दृष्टि से हमें पाठ सिखाते हैं । धर्म केन्द्रों की आय का कुछ अंश सदैव साहित्य निर्माण और प्रचार कार्य में लगना चाहिये।
कटनी में सिंघई धन्यकुमार जी का घराना पर्याप्त काल से प्रतिष्ठित है। पंडित जी के लिये उनके परिवार ने जो किया, वह शायद ही कोई कर सके । एक बार सिंघई जी की दुकान से एक गरीब जैन भाई को 'मंदिर मरम्मत' के नाम पर बनी झूठी रसीदों पर पंडित जी के रोकने पर भी सहायता दी गई। पंडित जी ने जब पूछ-ताछ की, तब उनसे कहा गया कि समाज का गरीब भाई जान कर उसे चंदा दिया गया है।
"लेकिन उसने तो झूठ का सहारा लिया, फिर भी आपने दिया है ?" "यदि वह झूठ न बोलता, तो कोई उसकी सहायता करता ?' न धमों धार्मिक विना' के सिद्धान्त को तो समाज भूल ही गई है।" पंडित जी को वास्तविकता स्वीकार करनी पड़ी। सिंघई परिवार आज भी समाज व धर्म के कार्यों के सहयोगी बना हुआ है। पंडित जी इस पूरे कुटुम्ब के मार्गदर्शक है ।
पंडित जी आचार्य कुंदकुंद के उन वचनों के अनुयायी हैं जिनमें कहा गया है कि जो आत्महित में परहित देखता है, वह सन्मार्गी है और अनुकरणीय है ।
उनके साधुवाद पर मैं अत्यंत प्रसन्न हूँ।
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