Book Title: Jaganmohanlal Pandita Sadhuwad Granth
Author(s): Sudarshanlal Jain
Publisher: Jaganmohanlal Shastri Sadhuwad Samiti Jabalpur
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मोरेना के मेरे आदर पात्र और मार्गदर्शक डॉ. जगदीशचन्द्र जैन बंबई
मोरेना जैन विद्यालय कभी एक शान थी। मुझे भी कुछ समय वहां अध्ययन करने का अवसर मिला है। मेरे जैसे नये विद्यार्थी का ध्यान एक बात की ओर बारबार जाता वह थी जगन्मोहन लाल जी और कैलाशचंद्र जी की जोड़ी। जब देखो, तब एक साथ । एक साथ रहते, एक साथ पढ़ते, साथ ही स्नान करने जाते, साथ-साथ देव दर्शन के लिए मंदिर जाते, एक साथ भोजनालय में भोजन करते और सायंकालीन भ्रमण में भी साथ-साथ रहते । लगता था एक आत्मा दो शरीरों में विद्यमान है। हम लोग बड़े गौरव के साथ उनकी प्रवृत्तियाँ देखते और मन ही मन गर्व का अनुभव करते-विद्यालय के वरिष्ठ विद्यार्थी जो वे थे। शायद ही उनसे बातचीत करने का कभी शुभ अवसर मिला हो। और तो और, सामने आ जाने पर 'अभिवादन' करने की भी हिम्मत कभी नहीं हुई। एक बार गर्मी की छुट्टियों में मैं नजीबाबाद गया हुआ था। देखता क्या हूं कि दोनों स्नेही मित्र छोटे तांगे पर सवार हुए चले आ रहे हैं । लेकिन क्या आप समझते हैं कि मैंने उनसे मिलने की या हाथ जोड़कर अभिवादन करने की हिमाकत की ? नहीं, बिलकुल नहीं । मैं एक ओर को खिसक गया जिससे वे मुझे देखकर पहचान न सकें। वरिष्ठ छात्र जो वे थे। मेरे आदर के पात्र ।
__ यह जानकर दुख होता है कि आजकल मोरेना-जैसे अनेक पुराने जैन विद्यालयों की गरिमा क्षीण हो गई है। वस्तुतः पुरातन और नूतन के बीच होनेवाले संघर्ष में हम बुरी तरह फस गये हैं। युवकों को मार्गदर्शन की आवश्यकता है। अर्थकरी विद्या की व्यावहारिकता के आगे धर्मशास्त्र की महत्ता सिद्ध करने की आवश्यकता है । यह प्रसन्नता की बात है कि मोरेना विद्यालय में पढ़ पडित जी ने जैन समाज में प्रतिष्ठित एवं विशिष्ट आदर का स्थान बना लिया है। वे नयी पीढ़ी का मार्ग दर्शन करें, यही कामना है।
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