Book Title: Jaganmohanlal Pandita Sadhuwad Granth
Author(s): Sudarshanlal Jain
Publisher: Jaganmohanlal Shastri Sadhuwad Samiti Jabalpur
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७८ पं० जगन्मोहनलाल शास्त्री साधुवाद ग्रन्थ
[खण्ड
मौलवी साहब यह सुनकर चकित रह गये कि मुनि जी ने आंखें खोलते ही रानी चेलना और श्रेणिक दोनों को धर्मवृद्धि का आशीर्वाद दिया एवं समभाव प्रकट किया। मौलवी साहब को जिज्ञासा हुई कि कोई भी व्यक्ति अपने विरोधी पर समदृष्टि कैसे हो सकता है ? उन्हें जैन साधु के दर्शन की अभिलाषा भी हुई।
सर सेठ सोनी जी की अनुमतिपूर्वक पंडित जी अपने वाक्चातुर्य से ४०० श्रावकों के साथ दरगाह शरीफ पर भाषण करने गये। वहां ४-५ हजार जन-समुदाय मौजूद था । आपने ४० मिनट के भाषण में श्रोताओं में राष्ट्रीयता, एकता, भाईचारा तथा अहिंसा के पालन की व्याख्या से एक नया जागृति मंत्र फूंक दिया। आपने मुस्लिम भाइयों को अतिथि बताया और उनके खुदा की इबादत करते हुए कहा कि जब खुदा ने हमें और जानवरों को- सभी को, दुनिया को बनाया है, खुदा की बनाई दुनिया की वस्तुओं को तोड़े, तो कैसा लगेगा ? अहिंसा ही हमें माईचारा सिखाती है । हमें एक दूसरे से मेल-मिलाप करना बताती है। सभी धर्मों में यही सिखाया गया है । इस तरह धर्मं विशेष का नाम लिये बिना सभी धर्मों के मूल सिद्धान्त की प्रभावक चर्चा अजमेर में काफी समय तक चली | इस व्याख्यान को अजमेर के सभी पत्रों, आजाद, नवज्योति, अमर भारत तथा दरवार अजमेर ने मुखपृष्ठ पर प्रकाशित किया । यह घटना पंडित जी की व्याख्यान - कला एवं विषय प्रस्ताव की प्रभावी विधि का निरूपण 1
सन्मति सन्देश के 'राम' और पंडित जी की सूझबूझ
वर्ष १९५७-५८ की बात है जब क्षु० सहजानंद वर्णी की वरद छत्रछाया में 'सन्मति सन्देश' मासिक जबलपुर से प्रकाशित होता था । उसमें भगवान् राम के संबंध में एक लेख प्रकाशित हुआ । यह जैन रामायण पर आधारित था । पारस्परिक मत प्रतिस्पर्धा ने इस लेख को सांप्रदायिक रूप दे दिया । बस क्या था, जैनेतर संप्रदाय के लोगों ने जैन बोर्डिंग के जैन मंदिर की छोटी-बड़ी मूर्तियों को खंडित कर दिया । कुछ बड़ी मूर्तियाँ तो इस प्रकार तोड़ी गई थी कि जैनेतर लोग भी दुःखी हुए। कुछ ही समय में इस घटना ने विकराल रूप लिया और जैनों के साथ दुर्व्यवहार, मारपीट, दूकानों की लूटपाट एवं क्षतिकरण के कार्य किये गये ।
सरकार से गुहार करने पर उसने श्री गमन लाल वागडी व सुश्री रूपरानी को उत्तेजना शान्त करने एवं सौहार्द स्थापित करने के लिये जबलपुर भेजा। जैन समाज, जबलपुर की ओर से अनेक तर्क-वितर्कों के बाद पंडित जी को प्रतिनिधि बनाया गया । शासन के प्रतिनिधि के रूप में श्री मिश्री लाल जी गंगवाल ने सुझाव दिया, “घटना तो घट ही गई है। अब इन मूर्तियों को सिरा देना चाहिये और ऐसे उपाय करना चाहिये कि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो ।"
चित्र प्रकाशित हुए थे और समूचे देश का जैन शासन के प्रतिनिधियों से कहा, "हम आपके लिये यह आवश्यक है कि शासन एक जनसभा हमें कोई आपत्ति
उस समय 'धर्मयुग' पत्रिका में खंडित मूर्तियों के समाज क्षुब्ध था । इस क्षेत्र को शान्त करने के लिए पंडित जी ने सुझाव का आदर करते हैं । पर समाज के क्षोभ को शान्त करने के द्वारा ऐसी घटना के लिये खेद प्रकट करे एवं आश्वासन दे । इसके बाद मूर्तियों को सिराने में नहीं होगी ।" अनेक प्रकार के मतों को सुनने के बाद युक्ति से काम लिया गया और सभी संप्रदाय एवं पार्टियों के सहयोग से जनसभा आयोजित हुई और उसमें जैन समाज के प्रति हुए दुर्व्यवहार एवं उनकी मूर्तियों के प्रति किये गये असम्मान को अनुचित बताते हुए भविष्य के लिये सुरक्षा का आश्वासन दिया गया। इस अवसर पर पंडित जी ने बड़ा मार्मिक भाषण दिया ।
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