Book Title: Jaganmohanlal Pandita Sadhuwad Granth
Author(s): Sudarshanlal Jain
Publisher: Jaganmohanlal Shastri Sadhuwad Samiti Jabalpur
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विन्ध्य क्षेत्र के जैन विद्वान् - १. टीकमगढ़ और छतरपुर ५३ चिकित्सालयों की स्थापना, डाकखानों की सुविधा, सिंचाई हेतु बाँधों के निर्माण की स्वीकृति आदि कराकर आपने
अपने क्षेत्र का पर्याप्त विकास किया है । सामाजिक क्षेत्र में भी आपका महत्वपूर्ण योगदान रहता है ।
साहित्य के क्षेत्र में तो आपका योगदान है अमूल्य है । वर्णी साहित्य का सम्पादन ही आपका ऐसा अभूतपूर्व कार्य है जिससे आपको हमेशा याद रखा जावेगा। आपकी अछूत कोई नहीं पुस्तक को शासन से पुरस्कार प्राप्त हुआ है । आपने अभी तक लगभग १५ ग्रंथों का सम्पादन एवं लेखन कार्य किया है । आपके द्वारा लिखित शोध प्रबन्ध भागवत पुराण के आधार पर वर्णित भगवान् ऋषभदेव का तुलनात्कक अध्ययन एक महत्वपूर्ण शोध है । यह आपकी विशेषता है कि आपने अपने परिवार में पत्नी और पुत्री को भी साहित्य सृजन की ओर उत्साहित किया है ।
श्री लक्ष्मण प्रसाद जी प्रशांत
विद्यार्थी जी के ग्राम धनगुवा में ही जन्में और गुरुदत्त दिगम्बर जैन संस्कृत विद्यालय, द्रोणगिरि में शिक्षा प्राप्त करने वाले यशस्वी स्नातक श्री लक्ष्मण प्रसाद जी प्रशान्त उन विद्वानों में हैं जिन्होंने जैन शिक्षा संस्थाओं में शिक्षा प्राप्त कर लम्बे अरसे तक जैन शिक्षा संस्थाओं में ही शिक्षण का कार्य किया । श्री प्रशान्त जी ने १५ वर्ष से अधिक श्री गणेशवर्णी दिगम्बर जैन संस्कृत महाविद्यालय, मोराजी भवन, सागर में शिक्षण कार्य करते हुये सम्पादन - लेखन का कार्य किया । सामाजिक कुरीतियों के निवारण की ओर तो आपने क्रान्ति जैसा कार्य किया । कुरीतियों, कुरूढियों के निवारण एवं सामाजिक उत्थान के लिये आपने द्रोणप्रान्तीय सेवा परिषद् की स्थापना को और उनके माध्यम से समाज को बहुत आगे लाये । समाजोत्थान के सम्बन्ध में आपने अपने उत्तेजनापूर्ण भाषण दिये और लेख लिखे | आपने समाधि-तन्त्र एवं क्षत्र चूडामणि का पद्यानुवाद किया । आप जन्मजात कवि हैं । आपने बालकों के लिये सुन्दर कविताओं की रचना की जिसपर आपको मध्य प्रदेश साहित्य परिषद् से पुरस्कार भी प्राप्त हुआ। आप स्वयं अनुशासित हैं और दूसरों को अनुशासन में रहने की शिक्षा भी देते हैं । आप बड़े-बड़े समारोहों एवं सेवादलों का समायोजन कुशलता से करते हैं । वर्तमान में आप शासन की सेवा से अवकाश प्राप्त कर चुके हैं और एक पत्रिका के सम्पादक हैं । आप एम. ए., आचार्य एवं काव्यतीर्थ हैं । आपके द्वारा रचित साहित्य ठोस साहित्य के रूप में माना जाता है ।
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डॉ० भाग चन्द्र जी बह्मौरी (१९३८बह्मौरी ग्राम जिला छतरपुर में ३१ दिसम्बर १९३८ को जन्में श्री डॉ० भाग चन्द्र जी के पिता का नाम श्री सेठ गोरे लाल जी एवं माता श्रीमती तुलसाबाई थी । प्रारम्भिक शिक्षा अपने जन्म-नगर में ही प्राप्त कर सागर और वाराणसी में शिक्षा ग्रहण की। आपने एम. ए. (संस्कृत - पालि), साहित्याचार्य, विद्यावाचस्पति, साहित्यरत्न की परीक्षायें उत्तीर्ण की। कामन वेल्थ की स्कालरशिप से लंका में बौद्ध साहित्य में जैन धर्म विषय पर शोध सन् १९६६ से आप नागपुर विश्वविद्यालय में पालि- प्राकृत आपकी साहित्य सृजन में रुचि है जिससे निरन्तर आपकी एम. ए. पाठ्यक्रमों में भी स्वीकृत है । बौद्ध साहित्य महत्वपूर्ण स्थान है । आजकल आप एक बाल
प्रबन्ध लिखकर पी. एच डी. की उपाधि प्राप्त की । विभाग के व्याख्याता एवं अध्यक्ष पद पर आसीन हैं। लेखनी चलती रहती है । आपके द्वारा लिखित साहित्य पर आपके कई ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं जिनका साहित्य जगत् में पत्रिकाका सम्पादन भी कर रहे हैं । आपने अपना एक प्रकाशन संस्थान भी स्थापित किया है जिससे आपके अनेक
के
ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं ।
डॉ० नन्दलाल जैन ( १९२८
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इनका विवरण इसी ग्रंथ में अन्यत्र दिया गया है । जैनधर्म की वैज्ञानिक मान्यताओं के संदर्भ में आपके चार दर्जन शोधपत्र हैं ।
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