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चौंतीस स्थान दर्शन
४ मतिज्ञानोपयोग
(२२) आस्रव ५७ (२) क्षायिक भाव-९ ५ श्रुन ॥
मिथ्यात्व-५
३ क्षायिक ज्ञान ६ अवधि १ एकांत मिथ्यात्व
४ क्षायिक दर्शन ७ मन:पर्यय ज्ञानोपयोग २ विनय मिथ्यात्व
५ क्षायिक सम्यक्त्व ८ केवल ज्ञानोपयोग ३ विपरीत मिथ्याल्न
६ क्षायिक चारित्र ।
७ क्षायिक दान '४ संशय मिथ्यात्व दर्शनोपयोग-४ ९ अचक्षु दर्शनोपयोग ५ अज्ञान मिथ्यात्व
८ क्षायिक लाभ
९ क्षायिक भोग १० चक्षु दर्शनोपयोग
अविरत-१२ १० क्षायिक उपभोग ११ अवधि दर्शनोपयोग
हिंसक के अबस्था-६ ११ क्षायिक वीर्य १२ केवल दर्शनोपयोग ६ एकेन्द्रिय अवस्था
(३) क्षायोपमिक (मिश्र) (२१) ध्यान १६ ७ द्विन्द्रिय अवस्था
भाव-१८ आतथ्यान-४ ८ विन्द्रिय अवस्था
कुज्ञान-३ १ इष्टवियोग आर्तध्यान ९ चतुरिन्द्रिय अवस्था
१२ कुमति ज्ञान २ अनिष्ट संयोग आर्तघ्यान १० असंजी पंचेन्द्रिय अवस्था । ३ पीडा चिंतन आर्तध्यान
१३ कुश्रुत ज्ञान ११ संज्ञी पंचेन्द्रिय अवस्था १४ कुअवधि (विभंग) ज्ञान ४ निदान बंध आर्तध्यान रौत्र ध्यान-४ हिंस्यके अवस्था-६
ज्ञान-४ ५ हिसानंद रौद्रध्यान १२ पृथ्वी कायिक जीव १५ मति ज्ञान ६ मृषानंद ,
१३ जल कायिक जीव १६ श्रुति ज्ञान ७ चौर्यानंद ।
१४ अग्नि कायिक जीव १७ अवधि ज्ञान ८ परिग्रहानंद , १५ वायु कायिका जीव १८ मनःपर्यय ज्ञान धर्म ध्यान-४ १६ वनस्पति कायिक जीव
वर्शन-३ १७ बस कायिक जीव । ९ आज्ञाविचय धर्मध्यान
१९ अचक्षु दर्शन १० अपायविचय ,
कषाय-२५ पूर्वोक्त २० चक्षु दर्शन ११ विपाक विचय ,
योग-१५ पूर्वोक्त २१ अवधि दर्शन १२ संस्थानविचय । ये सब ५७ आस्रव जानना क्षयोपशमलनिघ-५
शुक्ल ध्याग-४ १३ पृथक्त्व वितर्कवीचार
(२३) भाव ५३ २२ क्षयोपशम दान
२३ क्षयोपशम लाभ १४ एकत्ववितर्क अवीचार
(१) औपशमिक भाव-२
२४ क्षयोपशय भोग १५ सूक्ष्मक्रिया प्रतिपाति १. उपशम सम्यक्त्व
२५ क्षयोपशम उपभोग १६ व्युपरतक्रियानिबर्तीनि २ उपशम चारित्र २६ क्षयोपशम वीर्य