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कोष्ठ ।
(१८) अ-क+य इस में -- ७ ग+३र इस को घटा देओ।
उत्तर, ७ -६क+ ग+रय-र । (१९) ० (य + र) - ५ (य+र) ल-१३ ल इस में ६ (य+र)२-६ (य+र) ल+ १२ल इस को घटा के शेष कहो।
उत्तर, (य+र)२+३ (य+र) ल-२५ ल।
(२०) २य-३कर -RVE+५/ -य बस को य+६ कर +५VE+२V - इस में घटा देने से शेष क्या रहेगा ?
उत्सर, ५य+ कर+EV ६-३ अ-य।
संकलन और व्यवकलम में कोष्ठ की व्याप्ति ।
२४। जिस काष्ठ के आदि में धन विह लगा है वह दिखलाता है कि उस कोष्ठ के भीतर का पद जोड़ा हुआ है * । इस लिये उस कोष्ठ को मिटा देने से भी उस भीतर के पद का माल यथास्थित हि रहेगा क्यों कि जोड़ने के पद को अपने सिह के साथ अलग लिखने से योग बनता है। । और जिस कोष्ठ के आदि में ऋण चिह लगा है वह यातित करता है कि उस कोष्ठ के भीतर का पद घटा हुआ है। इस लिये यदि सूण चिह से जुड़े हुए कोष्ठ को मिटा देना हो तो उस के भीतर जितने केवल पद हों उन सभों के धन ऋण चिह्न को पलटा देओ क्यों कि उस पद को घटा देना है।
• यदि किसी पद के कोष्ठ के भीतर और कितने एक कोष्ठ हों और उन सभों को उड़ा देना हो तो उतनी बेर यह पहिला कर्म करने से सब कोष्ठ उड़ जायेंगे। जैसा, . ___ * चौथे प्रक्रम में देखो।
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