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भिवपदों का रूपभेद । ६३३ - ४ यr-१५ यर+१०३ ३य-२र ४ ३३+६यर-१० या- १५३ २५+३र य+ (अ-ग) य-अग य+अ य+ (क-ग) य-कग य+क य+र-ल+२यर य+र+ल य२-र-ल+रल य-र+ल'
अ + अक+अकर-करेंग-कग२- गई अ-ग अ- करे +२ अग+ अकग +२ अगर + ग अ-क+ग'
तयः + (अत+द)+ (अद+कत)यर+कदर तय+दर ' अय+ (अर-ब) यर-(अब-अक) यर-बकर अय-बर'
(
हर। मिश्रपद को भिन्नपद का रूप देने का प्रकार ।
भागानुबन्ध वा भागापवाह के भिन्नपद का छेद और अभिन्नपद इन के गुणनफल में भिन्नपद के अंश को क्रम से जोड़ वा घटा देने से जो बनेगा सो अभीष्ट भित्रपद का अंश होगा और मिश्रपद में जो भित्रपद का छेद हो वही अभीष्ट भित्रपद का छेद होगा।
इस की उपपत्ति ।
मानो कि अ++ इस मिश्रपद का द्योतक य है अर्थात् य = अ+ तो समों को सम से गुण देने से, गय = अग+के :: य= अगक, वा, अग अग क यो उपपत्र होता है।
अकरे उदा० (१) अ- अक+ इस को भित्रपद का रूप देओ ।
म
+
क
अकर (अर-अक) (अ+क)+अकर न्यास। अर-अक+'अ+क
+क -क) (+ क) + अकरे (अर-कर)+प्रकर अ +क
+क
अ
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