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बष्टकर्म और द्वीष्टकर्म । , १७ । एकवर्णएकघातसमीकरणसंवन्धि प्रश्नों में जिन में प्रव्यात राशि किसी व्यक्त संख्या से गुणित वा भक्त वा अपने किसी अंश से सहित वा रहित हो उन में स्पष्ट है कि उन प्रश्नों से अय = क, ऐसा एक समीकरण उत्पन्न होगा। इन में क यह व्यक्त संख्या प्रश्न में ज्ञात रहती है इस को दृष्ट कहते हैं। अब ऐसे प्रश्न में जो अव्यक्त राशि का मान कोड इष्ट अर्थात् चाहो सो मानो, जैसा द, तो स्पष्ट है कि अद यह क के समान न होगा किंतु और कोई होगा सो मानो किन होगा इस को निष्यत्र कहते हैं। तो अइ = न, यह दसरा समीक-- रण है । इस से अ = । इस अ की उमिति को अय = क, इस समाकरण में अके स्थान में रखने से x य = क.. य = क । इस प्रकार से ऐसे प्रश्नों के उत्तर के लिये य = क यह बीजसत्र है। इस से यह नीचे लिखा हुआ विधि उत्पन्न होता है। इस विधि को इष्टकर्म कहते हैं।
इष्टकर्म । जिस ऐसे प्रश्न का उत्तर.जानना हो उस में पहिले अध्यक्त संख्या के स्थान में जो चाहो सो संख्या मान लेओ उस को इष्ट कहते हैं उस में प्रश्न की बोली के अनुसार सब गणित करो तब अन्त में जो निष्यन्त्र होगा उस का इष्ट और दृष्ट दून के गुणनफल में भाग देओ नो लब्धि आवेगी वही अव्यक्तराशि का मान होगा। उस से प्रश्न का उत्तर स्पष्ट होगा।
उदा० । जिस संख्या को दो से गुण के फल में उसी संख्या का प्राधा और तिहाई घटा देओ तो ४६ शेष रहता है यह संख्या क्या है?
मानो कि वह संख्या ६ है, तब
६४२-६४३-६४१ - = १२-३-२= यह निष्पत्र है। और प्रश्न में ४६ दृष्ट है। पस लिये ४२, यही अभीष्ट संख्या है। यह उत्तर।
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