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भिवसम्बन्धि कार्यक। - इसी प्रकार से जहां अपर दोनों पक्षों में १ बाड़ दिया है वहां १ घटा देने से यह सिद्ध होता है कि अय-कर = गल-कव।
अनुमान । इसी ऊपर की युक्ति से यह भी तुरंत सिद्ध होता है कि जोयल हो तो,
प्रय+कर अल+कव। गय-बरगल-घवा
गय+घर गल+घव । तीसरा सिद्धान्त । भित्रपद के अंश और छेद इन दोनों को किसी एक हि पद से गुण देओ वा भाग देओ तो भी उस भित्रपद का मान बिगड़ता नहीं। यों पहिले (५८) चे प्रक्रम में दिखलाया है परंतु कोर एक हि पद नोड़ देओ वा घटा दे तो ऐसी स्थिति नहीं रहती सो इस प्रकार से
(१) किसी (धन) भित्रपद के अंश और छेद इन दोनों में जो कोई एक हि (धन) पद जोड़ देओ तो अंश से छेद जैसा बड़ा वा छोटा होगा उस के अनुसार उस भिवपद का मान बड़ा वा छोटा होगा। इस की उपपत्ति। मानो कि यू मह भित्रपव है पर और कोर पद है। अब जानना चाहिये कि यह य दस से बड़ा वा छोटा है अर्थात अ > वा <! छेदगम से, या + अर > वा < यर + अय :
अर > वा < अय अर्थात् > वा < य इस से स्पष्ट प्रकाशित होता है कि र जैसा य से बड़ा या छोटा होगा उस के अनुसार यह इस से बड़ा वा छोटा होगा यों सिद्ध
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