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१८६ ____ भिवसम्बन्धि प्रकीर्णक ।
७६ । भित्र संख्या को दशमलव का रूप देने से वह दशमलव कहां परिच्छित्र और कहां आवर्त होगा इस का बिचार ।
मानो कि यह उद्दिष्ट भित्र संख्या का लघुतमरूप है । अब दूस के समान ऐसी एक भित्र संख्या खोजनी चाहिये कि जिस का छेद दस का कोइ पूरा घात होवे । सो ऐसा १ = अX१०= ता यह अभीष्ट दशमलव है जिस में दशमलव स्थान त हैं और ता यह अभित्र संख्या
है। अब ता = १०इस में अX १० यह क से अपवर्त्य है और अ यह क से दृढ है । इस लिये (४४) वे प्रक्रम से क से १० यह अ. वश्य निःशेष होगा। परंतु १० यह तो रके वा ५ के घात से वा २ और ५के घातों के गुणनफल से ही निःशेष होगा और किसी से नहीं होगा यह स्पष्ट है इस लिये जो के यह ३५ इस रूप का हो अर्थात __ यों किसी भित्र संख्या का लघुतमरूप हो तो उस का दशमलव सान्त अर्थात परिच्छिन होगा और इस से दूसरे भांति की भित्र संख्या का दशमलवरूप आवर्त होगा। क्योंकि जब इस में क से अ४१० यह कभी निःशेष नहीं हो सकता तो ऐसे भजन में जब से भाज्य पर का एक एक शन्य हर एक शेष पर लिया जावेगा तब से विरूप अन्त्य भाज्यों की संख्या क-१ से अधिक नहीं हो सकती यह स्पष्ट है। इस लिये फिर भाग लेते २ वही अन्त्य भाज्य बनेगा जो एक बेर पहिले बना है और भजनफल में फिर वेही अङ्क आवेंगे जो पहिले आए हैं और ऐसे ही फिर २ आते जायेंगे ।
८.। आवर्त दशमलव का भित्रारूप जानने का प्रकार । यह स्पष्ट है कि किसी पावर्त दशमलव का रूप यह है ।
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