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भिन्नसम्बन्धि प्रकीर्णक ।
૧૫ (अ.) यदि दा यह दां से निःशेष न होवे अर्थात दशमलों का अभिन्न संख्याओं के नाई भजन करने से यदि भाजक से भाज्य निःशेष न होवे तो भाज्य पर तब तक एक र शून्य दे के उस में भाजक का भाग देते हैं जब तक भात्य निःशेष होवे वा जब तक प्रयोजन होवे फिर भाजक और शून्यों से बढ़ा हुआ भाज्य इन पर से भजनफल में दशमलवस्थान करते हैं।
------- =
१८.७५।
३.२७
३.२७००००
६.२५
६.२५
१.७
१.५
१.७००००..... १२ .३
=५.६६६६ ...... । .८६२००००००....
-- =.७८३६३६३६...... ।
१.१ जिस दशमलव में एक हि एक संख्या उस के उपरान्त फिर २ वही पाती है और कहीं रुकती नहीं उस दशमलवको आवर्त दशमलव कहते हैं और इस से दूसरे भांति का जो दशमलव है उस को परिच्छिन्न दशमलव वा अनावर्त कहते हैं।
जैसा ऊपर के तीसरे और चौथे उदाहरण में भजनफल आवर्त दशमलव है।
(3) जब कि द = डा सो ढौ = दान है = डा इत्यादि ।
इस लिये दशमलव का वर्गादि घात अभिव संख्या के वर्गादि घातों के नाई बना के उस में उतने दशमलवस्यान करते हैं जितनी मूल के दशमलवस्थान और घातमापक इन के गुणनफल की संख्या होवे ।
इसी की उलटी दशमलब के धादिमल निकालने की युक्ति है ।
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