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समीकरण का व्युत्पादन । कल्पित होता है इस लिये उस के पद वा पदों के मान उस कल्पित साम्य के अनुसार नियत रहते हैं।
(४) कल्पित समीकरण में अध्यक्तपद व्यक्तपदों से संबद्ध रहता है वहां जिस क्रिया से उस समीकरण के पतों का साम्य न बिगड़े और एक पक्ष में केवल अध्यक्तपद को और दूसरे पक्ष में सब व्यक्तपदों को कर देते हैं उस क्रिया को समक्रिया कहते हैं।
(५) कल्पित समीकरण में अव्यक्त का मान वह है जिस से उस समीकरण में उत्थापन करने से वह समीकरण प्राकृत हो जावे अर्थात उस के दोनों पक्ष एकरूप हो जावें ।
जैसा । य + अ =क, इस में य अव्यक्त है और अ और क ये व्यक्त पद हैं। और यहां य का मान क- अ है क्योंकि उत्थापन से अर्थात उद्दिष्ट समीकरण में य के स्थान में क-अको रखने से क-अ+अ = क, वा, क-क यह प्राकृत समीकरण होता है।
८२। इस प्रक्रम में समीकरण के भेद कहते हैं।
(१) जिस समीकरण में एकही अव्यक्त है उस को एकवर्ण समीकरण कहते हैं।
(२) जिस में अनेक अव्यक्त हैं उस को अनेकवर्ण समीकरण कहते
(३) छेदगम और यथासंभव अपवर्तन इत्यादि करने से समीकरण में अव्यक्त का जो घात सब से बड़ा रहता है उस घात के नाम का वह समीकरण कहलाता हैं । जैसा जो समीकरण में अव्यक्त का एक घात रहे तो उस को एकघातसमीकरण कहते हैं। जैसा य = अ। और जो समीकरण में अव्यक्त का सब से बड़ा घात वर्ग ही हो तो उस को वर्गसमीकरण कहते हैं। यह दो प्रकार का एक केवल धर्गसमीकरण और दूसरा मध्यमाहरण । जिस में अव्यक्त का वर्ग मात्र रहता है उस
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