Book Title: Bijganit Purvarddh
Author(s): Bapudev Shastri
Publisher: Medical Hall Press

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Page 289
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७५ एमघाससमीकरणसम्बन्धि प्रश्न । जानो । नो हानि का मान सम हो तो उतना लाभ जानो । इत्यादि। यो जो पर्व देश का मान या आवे तो वह पश्चिम देश का मान होगा। पश्चिम देश का मान जय हो तो पर्व देश का होगा । घों उम्र देश के ऋण मान को दक्षिण देश का और दक्षिण देश के सण मान को उत्तर देश का मान जानो । इत्यादि । इसी प्रकार से किसी क्षण से उत्तर भार्यात भविष्यत् काल का मान जो ऋण आवे तो वह उस क्षण के पीछे का उलटा काल अर्थात् भूतकाल जाना । जो भूतकाल का मान ऋण आवे तो वह भविष्यत् काल का जानो । इत्यादि । यों ही जब प्रश्न के उत्तर में केवल संख्या का मान गुण आवे तो प्रश्न की बोली में जहां उस संख्या को जोड़ने कहा होगा वहां घटाना और जहां घटाना कहा होगा वहां नोड़ देना कहो । इस लिये प्रश्न के उत्तर में जो ऋण मान आवे तो ऊपर जो ऋणात्व का प्रतिपादन किया है उस के अनुसार प्रश्न के उस उत्तर की प्रतीति कर लेओ।. १५। ऊपर के प्रक्रम में नो प्रतिपादन किया है उस का अच्छी भांति बोध होने के लिये इस में बीजसत्र का लक्षण लिख के उस पर और कुछ विशेष लिखते हैं। बीजगणित के प्रश्न में जो मान व्यक्त अर्थात् ज्ञात हैं उन के स्थान में अ, क इत्यादि वा प, फ इत्यादि अक्षर मान के को अव्यक्त राशि का मान उन्हीं अक्षरों में ले पाओ तो अन्त में जो समीकरण उत्पन्न होता है अर्थात जिस में अव्यक्त राशि के समान व्यक्त राशियों के द्योतक अतरो में एक पत्त उत्पन्न होता है वह समीकरण 'ब्रीजसत्र' कहलाये। इस बीजसूत्रसंज्ञक समीकरण में व्यक्त अक्षरों का उन की संख्याओं से उत्थापन करने से तुरंत अव्यक्त राशि का मान ज्ञात होता है। और इस प्रकार से जिस प्रश्न का बीजसत्र उत्पन्न करो उस से उस प्रश्व के सनातीय जितने प्रश्न होंगे उन सभों का उत्तर केवल व्यक्त की सोनि से जानने का सूत्र अर्याल विधि उत्पन्न होता है। जैसा कम For Private and Personal Use Only

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