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૧૦:
भित्रसम्बन्धि प्रकीर्णक ।
तो इस से स्पष्ट है यदि म यह कोइ धनात्मक संख्या विषम
म म
हो तो
+ यह य + र से निःशेष होगा । अर्थात्
म
य +र य +र
म
म - १
म
=य
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म
य - र म- १
य +
म-२ -- इत्यादि - य
म-२
य
र+य
म म
और जो म कोइ धनात्मक संख्या सम हो तो य + ₹ इस में
य + र का भाग देने से २र
यह शेष बचेगा इस लिये जो म कोइ
धनात्मक संख्या सम हो तो य + ई से निःशेष होगा । अर्थात्
म-२
म-३ - य - य र+य T
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म
म
२ वा
इत्या० + पर
म- १ +र
म-२
म
-र यह य +र
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म - १ |
- र
७४ | यह स्पष्ट है कि जब कोई राशि घटते २ शून्य हो जाव तब फिर वह और नहीं घट सकता इस लिये ऐसे घटने को उस राशि का परम ह्रास कहते हैं । और जब कोइ राशि बढ़ते २ ऐसा बढ़ नावे कि जिस को कोइ इयत्ता अर्थात् परिमाण न कर सके तब उस की परम वृद्धि होगी । इस लिये ऐसे बढ़े हुए राशि को अनन्न राशि कहते हैं ।
जब किसी राशि का परम ह्रास हो जाता है तब उस को ० दूस चिह्न से योतित करते हैं और जब कोई राशि अनन्त हो जाता है तब उस का मान दिखलाने के लिये ० यह चिह्न लिखते हैं ।
(९) = ग इस में यदि अ का मान सर्वदा एकरूप रहे तो स्पष्ट है कि ज्यो २ क घटेगा त्यो २ ग बढ़ेगा इस लिये जो क का परम ह्रास होवे अर्थात् क शून्य होवे तो ग की परम वृद्धि अर्थात् अनन्त होगा ।