________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
१८२
है
७७ । जब कि
५८६४० ५००००
S
९००० ६०० ४० +
+
+
+ १००० १००० १००० १००० १००० १०००
Ε
= ५० + C+ + १०
तो ५९.६४० = ५० + C+
www.kobatirth.org
भिसम्बन्धि प्रकीर्णक ।
तो द =
त
१०
+ १०० १०००
६ 8
+ + १० १०२
इस से यह स्पष्ट प्रकाशित होता है कि दशमलव में दशमलव बिन्दु की बांई ओर अभिन्न संख्या और दहिनी ओर भित्र संख्या रहती है और भी इस में अभिन्न संख्या में जैसे बांई ओर से दाहिनी ओर उत्तरोत्तर अङ्कों के गुणक दशमांश दशमांश होते हैं वैसे हि आगे भिन संख्या में भी होते हैं अर्थात् दशमलव में अङ्कों की स्थिति वैसी हि रहती है जैसी अभिन्न संख्या में है । इसी लिये दशमलवों का संकलन और व्यवकलन उसी भांति बनाते हैं जैसा अभिन्न संख्याओं का एकादि स्थानों के अङ्कों के नीचे एकादि स्थानों के अङ्क लिख के बनाते हैं ।
जैसा ९००४.५०३
२९१३.८४
१२६१८:३४३
और द
योज्य |
योजक ।
योग ।
"
७८ | दशमलबों के गुणन आदि परिक्रमों की उपपत्ति । मानो कि द और दं ये दो दशमलव हैं और इन में क्रम से त और तं ये दशमलव स्थान हैं और इन के दशमलव बिन्दु को मिटा देने से जो अभित्र राशि बनेंगे वे क्रम से दा और दां हैं ।
दा
दो
S
१०३
१०
(१) दशमलवों का गुणनफल = दर्द
८०४.१९
वियोज्य |
६२. ३२५८ वियोजक |
७४१.८६४२ चान्तर ।
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
#1
दा
For Private and Personal Use Only
X
दाद
त+तं
१०