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भिवसम्बन्धि प्रकीर्णक । :. य+ल+श+स>त (र+a+ + ह)
पार य+ल+श+स<थ (r+a+ष+ह) . य+ल+श+स >त और < थ । यह सिद्ध हुआ ।
इस उदाहरण में जो चार भित्रपदों का गुण दिखलाया है वही दो आदि अनेक पदों में भी रहता है और यह इसी ऊपर दिखलाई हुई युक्ति से सिद्ध होता है।
अभ्यास के लिये और उदाहरण ।
(१) यह सिद्ध करो कि यर यह सर्वदा यह इस से छोटा होता है जो य से र छोटा हो। - (२) यह सिद्ध करो कि य + यह + १ दस से बड़ा होता है जो य = र न हो। ___ (३) यह सिद्ध करो कि य+ यह+1 इस से बड़ा होता है जो य=र न हो । अर्थात् कोइ भित्रपद और उस का व्यस्तपद इन के योग से उन के वर्गों का योग सदा बड़ा होता है।
(४) यह सिद्ध करो कि या + य यह + इस से बड़ा होता है जो य =र न हो।
७१। इस प्रक्रम में भिवपद संबन्धि कितने एक उपयोगि सिद्धान्त लिखते हैं।
पहिला सिद्धान्त । जो यहो तोयल होगा। इस की उपपत्ति।
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