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य
१२८ भित्रपदों का संकलन गरि व्ययकलन ।
अब संकलन की यह रोति है कि पहिले उद्दिष्ट पदों को समच्छेद करो फिर उन समच्छेद पदों के अंशों का योग करो वह अभीष्ट योग का अंश है और जो समच्छेद पदों का छेद है वही अभीष्ट योम का छेद है। __ और व्यवकलन की यह रीति है कि पहिले उद्दिष्ट पदों को समय च्छेद करो फिर उन में जो पद वियोजक हो उस के अंश को वा अनेक वियोजक हों तो उन के अंशों के योग को वियोज्य में वा वियोज्यों के योग में घटा देने से जो शेष बचे वह अभीष्ट अन्तर का अंश है और जो समच्छेद पदों का छेद है सो हि अभीष्ट अन्तर का छेद है।
दूस की उपपत्ति ।।
मानो किम और च इन पदों का योग करना है और मानो कि इन पदों के द्योतक क्रम से य, र, और ल ये तीन पद हैं अर्थात्
र , और ल= चतो
- य+र+ल- + + अब मानो कि क, घ और छ इन छेदों का लघुतमापवर्त्य म है और एन में छेदों का अलग २ भाग देने से क्रम से त, थ और द ये लब्द होते हैं। तो ऊपर के दोनों पक्षों को म से गुण देने से,
(य+र+ल) म = अम + म + चम अथवा (य+र+ल) म= अत + गथ + चद :: य+र+ ल धा, + I + = अत+ गय+चद । इस से संकलन की रीति की उपपत्ति स्पष्ट प्रकाशित होती है। इसी भांति व्यवकलन की रीति की भी युक्ति जानो।
यहां जिन पदों का योग या अन्तर करमा है उन में जो कितने एक अभिवपद वा मित्रपद हो तो वहां मियपदों का योग वा अन्तर
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