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प्रकीर्णक |
[३] जब कि (य + अ) (य + क) = य े + अ + क) य + अक ।
तो इस से स्पष्ट है कि य + अ और य + क ऐसे दो द्वियुक्पदों का गुणनफल त्रियुक्पद होता है और इस में पहिला पद य का वर्ग होता है, दूसरे पद में य का वारयोतक + क अर्थात् उन द्वियुक्पदों के द्वितीय पदों का योग होता है और तीसरा पद अक अर्थात् उन द्वितीय पदों का गुणनफल होता है । जैसा,
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(१) (य+५) (य + ७) = य े + (५ + ७) य+५४०
य + १२ + ३५ ।
(२) (य – ३) (य – 8) य े + (- ३ - ४) य + (-३) x ( - 8) - ८२ - ७८ + १२ ।
(३) (य + ६) (य-२) = य े + (६ - २) य + ६४ (-२) = य + ४ य - १२ ।
इसी भांति
जब कि (य + अ) (घ+क) (य+ग) = य + अ + क + ग) य
+ ( क + अ + कग) य + अकग ।
तो इस में भी स्पष्ट दिखाता है कि य + अ य + क और य + ग ऐसे तोन द्वियुक्पादों के गुणनफल में पहिला पद यरे, दूसरे पद में यर का वारयोतक अ, क और ग इन का योग, तीसरे पद में अ, क और ग मैं दे। २ के गुणनफलों का योग य का वारयोतक होता है और चौथा पद अ, क और ग इन का गुणनफल होता है। जैसा,
इन
(१) (य + २) (य + ३) (य + ४)
= य + (२+३+४) य े + (२४३+२X४+३x४ ) य + २४३x४ = य३ + य े +२६य + २४ ।
(२)
(य + १) (य - ३) (य +५)
- य े + (१–३+५) य े+{(१X-३) + (१×५) + (-३४५) } य + १४-३५
= य + ३८२ - १३ य - १५ ।
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