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प्रकीर्णक। (१) ३+७+ १२ = 2 + (३+४) य+३४४
__ = (य+३) (य+४)। (२) य - ८ + ७ = 1+ (-१-७) य+ (-१) (-७)
__ = (4-१) (य-७)। (३) ३२-२५-३५ = 2+ (५-७) य+५४ (-७)
= (य+५) (य-७)। [४] जो उद्दिष्ट राशि दो पदों के धनों का योग वा अन्तर है उस के खण्ड करने हों तो क्रम से एक खण्ड उन दो पदों के गुणनफल से घटा हुआ वा जुडा हुआ उन दो पदों के वर्गों का योग, और एक उन दो पदों का योग वा अन्तर ऐसे दो खण्ड होंगे । इस की उपपत्ति (३९) वे प्रक्रम के चौथे सिद्धान्त से स्पष्ट है । जैसा,
(१) अ+८ कई = (अर-२ अक + ४ क) (अ+२क)। (२) अ६- य = (अ + य३) (अ - य३)
= (अर-अय+य) (अ+य) (अ+ अय+य) (अ-य)। (३) अ + ३ अक+३ अक+क-ग
= ( क)३ - गरे = (अ+क)२+ ग (अ+क)+गर (अ+क-ग)
= (अ+२ अक+क+अग+कग+गर) (+क-ग)। [५] कहीं २ उद्दिष्ट अदृढ राशि के खण्ड करने के लिये उस में कितने एक पदों के अपनी बुद्धि से ऐसे दो वा अधिक भाग करो वा उस अदृढ राशि में ऐसे एक वा अनेक पद जोड के घटा देओ कि जिन से अदृढ राशि पहिले प्रकारों से खण्ड करने के योग्य होवे । यह कल्पना गणित में प्रति अभ्यास होने से आप से आप मन में प्रगट होती है। जैसा, - (१) य+५यर + = +२ यर +३ यर+६२ .
= य (य+२ +३र (य+२२)= (य+३र) (य+२२)।
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