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भित्रपद का व्युत्पादन । (१) जो अभिवपद भिवपद से जुड़ा हुआ है उस को भागानुबन्ध कहते हैं । जैसा, अ++ __(२) जो अभिवपद भित्रपद से घटा हुआ है उस को भागापवाह कहते हैं। जैसा, अ-क।
५८। मानो कि अदस भित्रपद का न्योतक य है अर्थात य= अतो (१८) वे प्रक्रम के दूसरी प्रत्यक्ष बात के अनुसार दोनों पक्षों को क से गुण देने से कय = अ और भी इन दोनों पक्षों को म से गुण देने से
मकय= मन ......................................... (प्रा)
(१) अब (आ) इस के दोनों पक्षों में क का भाग देने से,
मय = मत्र अर्थात् मx= मजा। इस से स्पष्ट प्रकाशित होता है कि जो किसी अभिनपद से भित्रपद के अंश को मात्र गुण देओ और छेद को वैसा हि बना रहने देवो तो वह उस भित्रपद और अभिन्नपद का गुणनफल होगा । (२) (ग्रा) इस के दोनों पक्षों में मक का भाग देने से
य = मग अर्थात = मय इस से स्पष्ट प्रकाशित होता है कि किसी भित्रपद का अंश और छेद इन दोनों को किसी एक हि पद से गुण के बढ़ा देने से वा भाग देके छोटा करने से उस भित्रपद का मोल बिगड़ता नहीं ।
५६ । और भी जब कि अ अ = २१ = ३१ = मन = --मत्र - तो इस से स्पष्ट है कि कोई अभिवपद भिवपद के रूप का हो सकता है, और किसी भिवपद का अंश और छेद इन दोनों के चिह्नों को पलट देने से उन भिवपद का मोल नहीं बिगड़ता।
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