________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
प्रकीर्णकः । इस की उपपत्ति । जब कि क और ग परस्पर दृढ हैं तो इन का परस्पर में भाग देने से अन्त का भाजक अवश्य १ होगा । सो ऐसा
क) ग (त
घथ च) घद चद १) च (च
यहां, ग-कत-घ, क-घथ = च, और घ-चद = १ । :: अग --अक्त = अघ, अक्र - अपथ = अच और अघ - अचद अब :: अक यह ग से निःशेष होता है ।
अघ भी ग का अपवर्त्य है, - :: अच भी ग का अपवर्त्य है, और :: ग से अनिःशेष होगा। यह सिद्ध हुआ।
यह उपपत्ति ग को क से बड़ा मान के दिखलाई इसी भांति क को ग से बड़ा मान के भी स्पष्ट होती है ।
इस की प्रकारान्तर से उपपत्ति दिखलाते हैं।
जब कि क और ग ये परस्पर दृढ हैं तब जो इन दोनों को असे गुण देओ तो स्पष्ट है कि अक और अग इन दो गुणनफलों का मह. समापवर्तन अ होगा (प्र • ४३) और अक यह ग का अपवर्त्य माना है और अग यह ग से निःशेष होता हि है। इस लिये जब कि अक और अग इन दोनों को ग निःशेष करता है तब (४३) वे प्रक्रम के दूसरे अनुमान से सिद्ध होता है कि ग यह अक और अग इन के महत्तमापवतन को अर्थात् अको भी निःशेष करेगा। यों उपपन्न हुआ।
For Private and Personal Use Only