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५ कर
(२) अ + ४ अक
- क + ५ अक
५ कर
(क) + ५ क ( क) = ( + ५क) (- क) 1 (३) घरे + य + १० य + २८२ - २य - ४+५+ १० य े (य + २) - २८ (य +२) + ५ ( + २) (य े - २८ + ५) (य +२) ।
1
(४) + ४ क + ३ क
( + २क) २ - क
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(६) + ६ क + १२
प्रकीर्णक |
i
(
―
(५) थ* + यल +ल' = य' + २य ेल' + ल' - यल
=
= (य े + ल े) २ – (यल)= (य े + यल + ल े) (य े-यल + 'ल') ।
+ ६ क +१२
( + २क) ३ - करे
-
+ 8 क + ४ कर (+३क) ( + क) ।
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+ ७ करे
क + ८ करे - करे
{(अ + २क) + (अ + २क) क + क े} ( + क)
+ ५ क + ७ क े) (+क) ।
[६] जिस बहुयुक्पद को सुधार के लिखने से उस के आदि में जो मुख्य अक्षर का ( वा मुख्य पद का ) सब से बड़ा घात होगा उस का वारयोतक १ हो और अन्त के पद में मुख्य अक्षर (वा पद) को न हो वह बहुयुषपद जो किसी द्वियुक्पद से निःशेष होने के योग्य हो तो उस द्वियुक्पद के जानने का प्रकार ।
उद्दिष्ट बहुपद को सुधार के लिखो अर्थात् उस में मुख्य तर के (वा किसी मुख्य पद के ) घातों के घातमापक क्रम से घटते हुए रहें यों बना के लिखा तब अन्त में जो पद ऐसा होगा कि जिस में मुख्य अक्षर (वा पद) कोइ न हो वह जितनी श्रृङ्कात्मक वा बीजात्मक संख्यात्रों से निःशेष होता हो अर्थात् उस के जितने अपवर्तन हों उन में हर एक अपवर्तन को धन और ऋण मान के उस को उस मुख्य अक्षर ( वा पद) के समान माना और उस से उद्दिष्ट पद में मुख्य जातर (घा पद) का
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