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(१४) ६ + १७२ - ३० - ५६
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प्रकीर्णक ।
२) (२ + ७) (३+४) ।
४२ । जो दो राशि १ छोड़ और किसी एक हि राशि से निःशेष भागे नहीं जाते उन को परस्पर दृढ कहते हैं और जो भागे जाते हैं उन को परस्पर अदृढ कहते हैं ।
- यहां, ग
४३ । कोइ दो राशियों में छोटे राशि का बड़े राशि में भाग देने से जो शेष बचेगा उस का उस के भाजक में भाग देओ तब जो दूसरा शेष बचेगा उस का फिर उस के भाजक में भाग देओ । यों उन दो राशियों का परस्पर में भाग देने से जिस शेष से उस का भाजक निःशेष होगा उस शेष से वे दोनों राशि निःशेष भागे जावेंगे और उस से भागे हुए वे दो राशि परस्पर दृढ होंगे ।
क) अ (त
कत
-
मानो और क ये दो राशि हैं। इन में राशि क से बड़ा है और मानो कि में क का भाग देने से त लब्ध होता है और ग शेष रहता है फिर ग का क में भाग देने से थ लब्ध होता है और घ शेष रहता है । फिर भी घ का ग में भाग देने से द लब्ध होता है और ष कुछ नहीं बनता है । इस का न्यास दिखलाते हैं ।
·
ग) क (थ
गथ
घ) ग (द
घद
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तो यहां घ से और क ये दोनों निःशेष होवेंगे । इस की उपपत्ति
इस भांति स्पष्ट होती है ।
घद = ० : पक्षान्तरनयन से,
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ग
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घद |