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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ७० प्रकीर्णक | [३] जब कि (य + अ) (य + क) = य े + अ + क) य + अक । तो इस से स्पष्ट है कि य + अ और य + क ऐसे दो द्वियुक्पदों का गुणनफल त्रियुक्पद होता है और इस में पहिला पद य का वर्ग होता है, दूसरे पद में य का वारयोतक + क अर्थात् उन द्वियुक्पदों के द्वितीय पदों का योग होता है और तीसरा पद अक अर्थात् उन द्वितीय पदों का गुणनफल होता है । जैसा, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१) (य+५) (य + ७) = य े + (५ + ७) य+५४० य + १२ + ३५ । (२) (य – ३) (य – 8) य े + (- ३ - ४) य + (-३) x ( - 8) - ८२ - ७८ + १२ । (३) (य + ६) (य-२) = य े + (६ - २) य + ६४ (-२) = य + ४ य - १२ । इसी भांति जब कि (य + अ) (घ+क) (य+ग) = य + अ + क + ग) य‍ + ( क + अ + कग) य + अकग । तो इस में भी स्पष्ट दिखाता है कि य + अ य + क और य + ग ऐसे तोन द्वियुक्पादों के गुणनफल में पहिला पद यरे, दूसरे पद में यर का वारयोतक अ, क और ग इन का योग, तीसरे पद में अ, क और ग मैं दे। २ के गुणनफलों का योग य का वारयोतक होता है और चौथा पद अ, क और ग इन का गुणनफल होता है। जैसा, इन (१) (य + २) (य + ३) (य + ४) = य + (२+३+४) य े + (२४३+२X४+३x४ ) य + २४३x४ = य३ + य े +२६य + २४ । (२) (य + १) (य - ३) (य +५) - य े + (१–३+५) य े+{(१X-३) + (१×५) + (-३४५) } य + १४-३५ = य + ३८२ - १३ य - १५ । For Private and Personal Use Only
SR No.020330
Book TitleBijganit Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBapudev Shastri
PublisherMedical Hall Press
Publication Year
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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