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प्रकीर्णक । य+1 = (अ+क) + (अ-क), वा, य+1 =२ । परन्तु य+r>२यर, ::२ अ>२यर: अ> यर। यों सिद्ध हुआ। (६) दो विषम राशिओं के वर्गयोग को उन्हीं दो राशिओं के गुणनफल से गुण देने से जो फल होगा उस से उन दो राशिओं के चतुर्घातों का योग सर्वदा बड़ा होता है।
उस की उपपत्ति । मानो य और र ये दो राशि हैं अब इन में जो य राशि र राशि से बड़ा हो तो स्पष्ट है कि य>ि इन दोनों पक्षों को य-र इस धनात्मक अन्तर से गुण देने से
य-यर> यर -र", तब पत्तान्तरनयन से
य+">य +यर, अर्थात य+r"> यर (य+र)।
और जो दो राशियों में य राशि र राशि से छोटा हो अर्थात् र>य तो >य। अब इन दोनों पक्षों को र-य इस धन अन्तर से गण देने से
-या>यर-य', . . तब पक्षान्तरनयन से
य+t">यर+घर', अर्थात य+r > यर (य+र)।
इस प्रकार से य और र दून राशिओं में य से रबड़ा हो वा छोटा हो तो भी य+r> यर (य+र) यही सिद्ध होता.है। यों उपपत्र हुआ।
. अभ्यास के लिये विषमीकरण के उदाहरण । (१) यह सिद्ध करो कि य> ६य-।
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