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प्रकीर्णक । इस की उपपत्ति । जब कि ऊपर के सिद्धान्त से सिद्ध है कि । .. य+ > २ यर, य+ ल>२ यल और र+ल>रल : तब अधिक पतों का योग भी न्यन पक्षों के योग से बड़ा हि होगा :: २य+२+२ल'>२ यर + २यल + २रल.
और :: य+ + ल> यर + यल + रल यों उपपन्न हुआ। इसी युक्ति से यह भी तुरन्त सिद्ध होगा कि ३ (य+र+ल+व.)>२ (यर + यल + यव+रल+रव+लब) वा, य+र+ल+व> ३ (यर + यल + यव + रल + रव + लव)। (३) दो विषम राशिओं के योग के वर्ग से उन राशिओं के वर्गी का योग दूना सर्वदा बड़ा होता है। या तीन विषम राशिओं के योग के वर्ग से उन के वर्गों का योग तिगुना और चार विषम सशिनों के. योग के वर्ग से उन के वर्गों का योग चौगुना सर्वदा बड़ा होता है। और इसी भांति अगे भी जाना ।
इस की उपपत्ति जब कि य+r>२ यर, इस लिये दोनों पक्षों में य+र जोड़ देने से
२ य १२>य+ या+र, अर्थात् २ (य+) > (य + ) यो उपपन हुआ। और जब कि (य+र+ल)२ = य+र+ले+२यर+ यल+रल
:: पक्षान्तरनयन से २यर + २ यल +२ रल = (य+र+ल)२-३२-२-ल। परन्तु ऊपर के दूसरे सिद्धान्त के अनुसार । - य+२ +२ ल>२ यर --२यल +रल
. य+२ +२ल >(य +त) -य--१२-लर बोर : पक्षान्तरनयन से
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