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प्रकीर्णक । - इस लिये जो अ-क>ग-घ इस विषमीकरण के दोनों पक्षों में घ नोड़ देओ तो अ-क + घ>ग-घ+ घ, __अर्थात् . अ-क+घ>ग। ये भी दोनों पत्त क्रम से अधिक न्यन हैं।
इसी भांति जो पर्व दोनों पक्षों में क जोड़ देओ तो अ-क+क>क+ग-घ, अर्थात् अ>क + ग - घ ये भी पत क्रम से अधिक न्यन हैं। और भी जो अ-य<+घ इन दोनों पक्षों में य जोड़ देओ
तो अ-य+य <क+घ+य, अर्थात अ<क+घ + य । ये भी दोनों पक्ष क्रम से वैसे हि न्यन अधिक हैं जैसे अ-य और क+घ ये हैं। . इस से जान पड़ता है कि > इस वा < इस चिह्न की दोनों ओर जो दो पक्ष हों उन में किसी एक पद का पत्तान्तरनयन करने से उन पत्तों का वैषम्य बिगड़ता नहीं।
अनुमान १ । समीकरण के दो पक्षों के हर एक पद का धन प्रम चिह्न पलट देने से भी उन दो पक्षों का साम्य बिगड़ता नहीं क्यों कि हर एक पद मानो पत्तान्तर में गया सा होता है।
अनुमान २ । यदि एक चिह्न से जुड़ा हुआ एक हि पद दोनों पक्षों में हो तो उस को छक दे सकते हैं।
इसी प्रसंग में विषमीकरणसंबन्धि कुछ सिद्धान्त लिखते हैं। . (१) जब कि धनात्मक वा मणात्मक पद का वर्ग धन हि होता है तो (य-र)२, वा, यर-२यर+r>.
: पक्षान्तरनयन से य+P>यर इस में जान पड़ता है कि कोई दो विषम राशिओं के धर्मों का योग सर्वदा उन के दूने गुणनफल से अधिक होता है। __(२) तीन विषम राशियों में हर एक दो २ राशियों के गुखानपानों के योग से उन तीन राशिओं के वर्गों का योग सर्वदा बड़ा होता है। .
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