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प्रध
घातक्रिया। ' (३५ यह सिद्ध करना चाहिये कि १+२य+यर
=१+४य+ १-२य+यर + य
या+१२य+१६य + ....अनन्त । १+ नय+यर
+ (न+२) य+२(न+२)य+३(न+२) य....और
१-नय+यर
+ (न-३
ITE (न'-५) य+ (न-२न)य +१)य + इत्यादि ।
५ घातक्रिया। ३२ । जिस क्रिया से उद्दिष्ट* पद का अभीष्ट घात बनता है उस को घातक्रिया कहते हैं।
रोति । एकरूप गुण्यगुणकरूप पदों का गुणनफल घात कहलाता है। इस लिये वह गुणनकर्म से बनता है।
उदा० (१) अ इस का द्विघात अथवा वर्ग = अ अ = पर अइसका त्रिघात अथवा घन= axax=अरे,
- चतुर्घात = xaxax , इत्यादि । और -अ दस का वर्ग =(-) (-अ) =अर,
......... घन = (-) (-) (-)=-अरे, ___ ...... चतुर्घात = (-) (-) (-) (-अ)=अ', पञ्चधात = (-) (-) (-) (-) (-अ)=-अ, ० । इस से यह स्पष्ट है कि धन पद का कोर परा घात धन हि होता है और ऋण पद का पूरा घात घातमापक के समत्व विषमत्व के अनु.सार धन वा मृण होता है अर्थात घातमापक सम हो तो धन होता है और विषम हो तो ऋण होता है। * उशिष्ट अर्थात् मन में लिया हुआ।
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