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गुणन । + (क-४ कग+गर) यr-(ग-५गघ+३घर) यर + (घ२-३चर)३ इस में घटा देओ। . उत्तर, (अ+ क+५कग-गर) य+ (कर-४कग+गरे-७१)गर - (ग-५गघ+४ +२ घच+५चर) यर + (७ घ+५चर) ।
३ गुणन ।
.३० रीति । गुण्य के एक २ केवल पद को गुणक के एक २ केवल पद से गुण देने से जो अलग २ गुणनफल होंगे उन का योग करो वही अभीष्ट गुणनफल है । अब यहां जो दो २ केवल पदों का गणन की पड़ता है उस में यदि उन केवल पद रूप गण्य गणकों के सिंह सनातीय हों तो उन का गुणनफल धन होता है । और विजा. तीय हों तो कृण होता है । और गुण्य गुणों के संख्यात्मक वारयोतकों का गुणनफल उन के गुणनफल का संख्यात्मक वारद्योतक है।
और गुण्य और गुणक इन में जो २ अतर होंगे वे ही सब गुणनफल में वर्णमाला के क्रम से लिखो।
____ * इस की सत्यता इस भांति स्पष्ट होती है। सोचो की +क इस को ग+घ इस से गुणना है। तो इन का गुणनफल परिभाषा से (अ+ क) (ग+ घ) यों होगा। . अब योगरीति से जाना जाता है कि (+क) (ग+ घ) यह ग (+क) और घ (+क) इन का योग है और भी ग (श्र+क) = अग+ कग और घ (+क) = अघ+ कघ ।
.( +क) (ग+घ) = ग (+क)+घ (+क) = अग+कग + अघ+ कघ इस में श्र+क इस का एक एक केवल पद ग+घ इस के एक एक केवल पद से गुणा गया है। इस से उक्त रीति की सत्यता स्पष्ट प्रकाशित होती है।
+ इस की उपत्ति यह है । 4-क और ग-घ इन का गुणनफल = (श्र-क) (ग-घ) = ग (श्र-क)- घ (श्र - क) = (अग-कग) - (अघ-कघ)
= अग-कग-अघ+कघ इस में श्र-क इस का एक एक पद ग-घ इस के एक एक पद से-अवश्य गुणा गया है। हो ऐसा (+) x (+ ग) = + अग, (+ अ) x (-घ)= - अघ,
(-क) x (+ ग) = -- कग और (- क) ४ (-घ) = + कघ । यह उपपत्र हुश्रा।
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